व्याख्या Poetry (page 4)
ज़मीं तश्कील दे लेते फ़लक ता'मीर कर लेते
शाहिद लतीफ़
सोच रहा है इतना क्यूँ ऐ दस्त-ए-बे-ताख़ीर निकाल
शाहिद कमाल
ख़ुद मुझ को मेरे दस्त-ए-कमाँ-गीर से मिला
शाहिद कमाल
ख़ुद मुझ को मेरे दस्त-ए-कमाँ-गीर से मिला
शाहिद कमाल
जो मिरी पुश्त में पैवस्त है उस तीर को देख
शाहिद कमाल
मिरी नज़र कि तरह दिल परिंद ओझल है
शाहिद जमील
सवाल करता नहीं और जवाब उस की तलब
शफ़ीक़ सलीमी
किसी के हाथ पर तहरीर होना
शफ़ीक़ सलीमी
ये अपने आप पे ताज़ीर कर रही हूँ मैं
शबाना यूसुफ़
रंग उड़ कर रौनक़-ए-तस्वीर आधी रह गई
सेहर इश्क़ाबादी
अब वहाँ दामन-कशी की फ़िक्र दामन-गीर है
सीमाब अकबराबादी
तलख़ीस के बदन में तफ़्सीर बोलती है
सरवर अरमान
रौशनी से तीरगी ताबीर कर दी जाएगी
सरवर अरमान
ऐसी वैसी पे क़नाअ'त नहीं कर सकते हम
सरफ़राज़ ज़ाहिद
ऐसी वैसी पे क़नाअत नहीं कर सकते हम
सरफ़राज़ ज़ाहिद
तिरा आना मिरे घर हो गया घर ग़ैर के जाना
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
अगर उल्टी भी हो ऐ 'मशरिक़ी' तदबीर सीधी हो
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
झूटी उम्मीद की उँगली को पकड़ना छोड़ो
सलमान अख़्तर
इक दरीचे की तमन्ना मुझे दूभर हुई है
सलीम सिद्दीक़ी
रंग ताबीर का टूटे हुए ख़्वाबों में नहीं
सलीम शहज़ाद
ज़ुल्मत है तो फिर शो'ला-ए-शब-गीर निकालो
सलीम शाहिद
मत पूछ हर्फ़-ए-दर्द की तफ़्सीर कुछ भी हो
सलीम शाहिद
बे-वज़्अ शब-ओ-रोज़ की तस्वीर दिखा कर
सलीम शाहिद
देखते कुछ हैं दिखाते हमें कुछ हैं कि यहाँ
सलीम कौसर
वो जो आए थे बहुत मंसब-ओ-जागीर के साथ
सलीम कौसर
मोहलत न मिली ख़्वाब की ताबीर उठाते
सलीम कौसर
अवाम
सलाम मछली शहरी
आप इज़्ज़त-मआब सच-मुच के
साजिद प्रेमी
तू ने पूछा है मिरे दोस्त!
साइमा असमा
विर्सा
साहिर लुधियानवी
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