क्या हसीं ख़्वाब मोहब्बत ने दिखाया था हमें
खुल गई आँख तो ताबीर पे रोना आया
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Anwar Masood
Habib Jalib
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(510) Peoples Rate This
चाहिए ख़ुद पे यक़ीन-ए-कामिल
नुमाइश-ए-अलीगढ़
ग़म से कहाँ ऐ इश्क़ मफ़र है
कहीं हुस्न का तक़ाज़ा कहीं वक़्त के इशारे
रूह को तड़पा रही है उन की याद
बे-तअल्लुक़ तिरे आगे से गुज़र जाता है
बे-कसी से मरने मरने का भरम रह जाएगा
ग़म-ए-इश्क़ रह गया है ग़म-ए-जुस्तुजू में ढल कर
हंगामा-ए-ग़म से तंग आ कर इज़हार-ए-मसर्रत कर बैठे
तौफ़-ए-हरम न देर की गहराइयों में है
रहमतों से निबाह में गुज़री
ज़लज़ला