बे-तअल्लुक़ तिरे आगे से गुज़र जाता है
ये भी इक हुस्न-ए-तलब है तिरे दीवाने का
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इश्क़ की चिंगारियों को फिर हवा देने लगे
तिरी अंजुमन में ज़ालिम अजब एहतिमाम देखा
अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम
ये तमाम ग़ुंचा-ओ-गुल मैं हँसूँ तो मुस्कुराएँ
मुझे तो क़ैद-ए-मोहब्बत अज़ीज़ थी लेकिन
कितनी दिल-कश हैं तिरी तस्वीर की रानाइयाँ
मुझे आ गया यक़ीं सा कि यही है मेरी मंज़िल
वो दिल में रहते हैं दिल का निशाँ नहीं मा'लूम
करने दो अगर क़त्ताल-ए-जहाँ तलवार की बातें करते हैं
किसी को जब निगाहों के मुक़ाबिल देख लेता हूँ
बे-कसी से मरने मरने का भरम रह जाएगा