तमन्ना Poetry (page 4)

तिरा मजनूँ हूँ सहरा की क़सम है

वली मोहम्मद वली

आज सरसब्ज़ कोह ओ सहरा है

वली मोहम्मद वली

अपनी ना-कर्दा-गुनाही की सज़ा हो जैसे

वकील अख़्तर

मत समझना कि सिर्फ़ तू है यहाँ

वाजिद अमीर

ज़िंदगी अपनी किसी तरह बसर करनी है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ख़ाक में किस दिन मिलाती है मुझे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

और इशरत की तमन्ना क्या करें

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आग़ाज़ से ज़ाहिर होता है अंजाम जो होने वाला है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तल्ख़ी-कश-ए-नौमीदी-ए-दीदार बहुत हैं

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

लबरेज़-ए-हक़ीक़त गो अफ़साना-ए-मूसा है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

दिल के कहने पे चलूँ अक़्ल का कहना न करूँ

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

देखना वो गिर्या-ए-हसरत-मआल आ ही गया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

दर्द आ के बढ़ा दो दिल का तुम ये काम तुम्हें क्या मुश्किल है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

और इशरत की तमन्ना क्या करें

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

जो दश्त-ए-तमन्ना में हर वक़्त भटकता है

वाहिद प्रेमी

हम आज राह-ए-तमन्ना में जी को हार आए

वहीद क़ुरैशी

ज़माने फिर नए साँचे में ढलने वाला है

वहीद क़ुरैशी

कोई न चाहने वाला था हुस्न-ए-रुस्वा का

वहीद क़ुरैशी

उम्र को करती हैं पामाल बराबर यादें

वहीद अख़्तर

कतरा के गुल्सिताँ से जो सू-ए-क़फ़स चले

वहीद अख़्तर

जिस को माना था ख़ुदा ख़ाक का पैकर निकला

वहीद अख़्तर

हम जो टूटे तो ग़म-ए-दहर का पैमाना बने

वहीद अख़्तर

मिरी वफ़ा की मुकम्मल तू दास्ताँ कर दे

विजय शर्मा अर्श

खोए हुए सहरा तक ऐ बाद-ए-सबा जाना

वारिस किरमानी

जमाल-ए-नस्तरनी रंग-ओ-बू-ए-यासमनी

वारिस किरमानी

फ़सील-ए-रेग पर इतना भरोसा कर लिया तुम ने

वली मदनी

काश उस बुत को भी हम वक़्फ़-ए-तमन्ना देखें

उरूज ज़ैदी बदायूनी

कुछ तो बताओ ऐ फ़रज़ानो दीवानों पर क्या गुज़री

उनवान चिश्ती

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