अकेला Poetry (page 11)

सुब्ह-दम भी यूँ फ़सुर्दा हो गया

सलाम मछली शहरी

शगुफ़्ता बच्चों का चेहरा दिखाई देने लगे

सलाम मछली शहरी

अब अयादत को मिरी कोई नहीं आएगा

सलाम मछली शहरी

दो साँसों की गहराई में

सलाहुद्दीन महमूद

आवाज़ों से जिस्म हुआ नम

सलाहुद्दीन महमूद

रात हिस्सा है मिरी उम्र का जी लेने दे

शख़ावत शमीम

रौशनी दर पे खड़ी मुझ को बुलाती क्यूँ है

शख़ावत शमीम

तेरे शैदा भी हुए इश्क़-ए-तमाशा भी हुए

सज्जाद बाक़र रिज़वी

मिरे सफ़र की हदें ख़त्म अब कहाँ होंगी

सज्जाद बाक़र रिज़वी

इश्क़ तो सारी उम्र का इक पेशा निकला

सज्जाद बाक़र रिज़वी

वो इश्क़ जो हम को लाहिक़ था

साजिदा ज़ैदी

ज़हर में डूबी हुई सुर्ख़ हिकायात में गुम

साजिद हमीद

मेरी आँखों में नूर भर देना

साजिद हमीद

फैल रहे हैं वक़्त के साए

सैफ़ुद्दीन सैफ़

जो तिरे पहलू में गुज़री ज़िंदगी अच्छी लगी

साहिर शेवी

जान-ए-तन्हा पे गुज़र जाएँ हज़ारों सदमे

साहिर लुधियानवी

हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पाएँगे तन्हा

साहिर लुधियानवी

एक वाक़िआ

साहिर लुधियानवी

बरबाद-ए-मोहब्बत की दुआ साथ लिए जा

साहिर लुधियानवी

चीख़ती गाती हवा का शोर था

साहिल अहमद

पागल औरत

सहबा अख़्तर

हर रात का ख़्वाब

सहबा अख़्तर

इस तरीक़े को अदावत में रवा रखता हूँ मैं

सहबा अख़्तर

आ जा अँधेरी रातें तन्हा बिता चुका हूँ

सहबा अख़्तर

हम क़त्ल कब हुए ये पता ही नहीं चला

सहर महमूद

दे सकेगा न तुम्हें फिर कोई आवाज़ कहीं

सग़ीर अहमद सग़ीर अहसनी

वो हक़ीक़त में एक लम्हा था

सग़ीर मलाल

क्यूँ हर उरूज को यहाँ आख़िर ज़वाल है

सग़ीर मलाल

किसी इंसान को अपना नहीं रहने देते

सग़ीर मलाल

रेत

सईदुद्दीन

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