अकेला Poetry (page 13)
दिल के दर्द के कम होने का तन्हा कुछ सामान हुआ
रज़िया फ़सीह अहमद
वो शाख़-ए-गुल की तरह मौसम-ए-तरब की तरह
राज़ी अख्तर शौक़
कैसे इस शहर में रहना होगा
राज़ी अख्तर शौक़
इन्ही गलियों में इक ऐसी गली है
राज़ी अख्तर शौक़
लगी है भीड़ बड़ा मय-कदे का नाम भी है
रविश सिद्दीक़ी
ज़िंदगी थी ये तमाशा तो नहीं था पहले
राशिद तराज़
अब ज़ीस्त मिरे इम्कान में है
राशिद नूर
ग़ौर करो तो चेहरा चेहरा ओढ़े गहरे गहरे रंग
राशिद मतीन
मुजरिम है तुम्हारा तो सज़ा क्यूँ नहीं देते
राशिद फ़ज़ली
मुंतज़िर आँखों में जमता ख़ूँ का दरिया देखते
राशिद आज़र
चाँद तन्हा है कहकशाँ तन्हा
रशीदुज़्ज़फ़र
सहरा सहरा बात चली है नगरी नगरी चर्चा है
रशीद क़ैसरानी
मैं चोब-ए-ख़ुश्क सही वक़्त का हूँ सहरा में
रशीद निसार
बअ'द-ए-फ़ना भी ख़ैर से तन्हा नहीं हैं हम
रसा रामपुरी
आशिक़ को तेरे लाख कोई रहनुमा मिले
रसा रामपुरी
मुमकिन है वो दिन आए कि दुनिया मुझे समझे
रसा चुग़ताई
रौशनी वाले तो दुनिया देखें
राम रियाज़
हर जाद-ए-शहर
राजेन्द्र मनचंदा बानी
तुझे ज़रा दुख और सिसकने वाला मैं
राजेन्द्र मनचंदा बानी
शोला इधर उधर कभी साया यहीं कहीं
राजेन्द्र मनचंदा बानी
दिन को दफ़्तर में अकेला शब भरे घर में अकेला
राजेन्द्र मनचंदा बानी
देखता था मैं पलट कर हर आन
राजेन्द्र मनचंदा बानी
बजाए हम-सफ़री इतना राब्ता है बहुत
राजेन्द्र मनचंदा बानी
आज तो रोने को जी हो जैसे
राजेन्द्र मनचंदा बानी
कम-निगही
राज नारायण राज़
आज की रात
रईस फ़रोग़
हवस का रंग ज़ियादा नहीं तमन्ना में
रईस फ़रोग़
आँखें जिन को देख न पाएँ सपनों में बिखरा देना
रईस फ़रोग़
ज़मीं पर रौशनी ही रौशनी है
रईस अमरोहवी
मैं जो तन्हा रह-ए-तलब में चला
रईस अमरोहवी
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