हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पाएँगे तन्हा
जो तुझ से हुई हो वो ख़ता साथ लिए जा
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Anwar Masood
Gulzar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Javed Akhtar
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उन का ग़म उन का तसव्वुर उन के शिकवे अब कहाँ
हर-चंद मिरी क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार है महबूस
अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत में
ऐ शरीफ़ इंसानो
बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था
चंद कलियाँ नशात की चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ
बहुत घुटन है कोई सूरत-ए-बयाँ निकले
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी कभी
इक और भी है मुंसिफ़
सब में शामिल हो मगर सब से जुदा लगती हो