उन का ग़म उन का तसव्वुर उन के शिकवे अब कहाँ
अब तो ये बातें भी ऐ दिल हो गईं आई गई
Gulzar
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इंसाफ़ का तराज़ू जो हाथ में उठाए
लब पे पाबंदी तो है
शहज़ादे
अपने अंदर ज़रा झाँक मेरे वतन
उन के रुख़्सार पे ढलके हुए आँसू तौबा
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
मुफ़ाहमत
चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है आँखों में सुरूर आ जाता है
मैं ने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी
नाकामी
हर-चंद मिरी क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार है महबूस