अपने अंदर ज़रा झाँक मेरे वतन

अपने अंदर ज़रा झाँक मेरे वतन

अपने ऐबों को मत ढाँक मेरे वतन

तेरा इतिहास है ख़ूँ में लुथड़ा हुआ

तू अभी तक है दुनिया में बिछड़ा हुआ

तू ने अपनों को अपना न माना कभी

तू ने इंसाँ को इंसाँ न जाना कभी

तेरे धर्मों ने ज़ातों की तक़्सीम की

तिरी रस्मों ने नफ़रत की ता'लीम दी

वहशतों का चलन तुझ में जारी रहा

क़त्ल-ओ-ख़ूँ का जुनूँ तुझ पे तारी रहा

अपने अंदर ज़रा झाँक मेरे वतन

तू द्राविड़ है या आरिया नस्ल है

जो भी है अब इसी ख़ाक की फ़स्ल है

रंग और नस्ल के दाएरे से निकल

गिर चुका है बहुत देर अब तो सँभल

तेरे दिल से जो नफ़रत न मिट पाएगी

तेरे घर में ग़ुलामी पलट आएगी

तेरी बर्बादियों का तुझे वास्ता

ढूँड अपने लिए अब नया रास्ता

अपने अंदर ज़रा झाँक मेरे वतन

अपने ऐबों को मत ढाँक मेरे वतन

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In Hindi By Famous Poet Sahir Ludhianvi. is written by Sahir Ludhianvi. Complete Poem in Hindi by Sahir Ludhianvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.