मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया
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बहुत घुटन है
ये दुनिया दो-रंगी है
तरब-ज़ारों पे क्या गुज़री सनम-ख़ानों पे क्या गुज़री
आज
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
तुझ को ख़बर नहीं मगर इक सादा-लौह को
तुलू-ए-इश्तिराकियत
फ़न जो नादार तक नहीं पहुँचा
नफ़स के लोच में रम ही नहीं कुछ और भी है
संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे
उन के रुख़्सार पे ढलके हुए आँसू तौबा