उन के रुख़्सार पे ढलके हुए आँसू तौबा
मैं ने शबनम को भी शोलों पे मचलते देखा
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मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने
'गाँधी' हो या 'ग़ालिब' हो
शर्मा के यूँ न देख अदा के मक़ाम से
नाकामी
आवाज़-ए-आदम
ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
नज़र से दिल में समाने वाले मिरी मोहब्बत तिरे लिए है
ताज-महल
जब तुम से मोहब्बत की हम ने तब जा के कहीं ये राज़ खुला
वफ़ा-शिआर कई हैं कोई हसीं भी तो हो
नफ़स के लोच में रम ही नहीं कुछ और भी है
जान-ए-तन्हा पे गुज़र जाएँ हज़ारों सदमे