तरब-ज़ारों पे क्या गुज़री सनम-ख़ानों पे क्या गुज़री
दिल-ए-ज़िंदा मिरे मरहूम अरमानों पे क्या गुज़री
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Gulzar
Habib Jalib
Anwar Masood
Allama Iqbal
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(625) Peoples Rate This
फिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ में
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
हम-अस्र
गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफ़ाक़ से
ब-शर्त-ए-उस्तुवारी
वफ़ा-शिआर कई हैं कोई हसीं भी तो हो
दुल्हन बनी हुई हैं राहें
चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है आँखों में सुरूर आ जाता है
रंगों में तेरा अक्स ढला तू न ढल सकी
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से
मैं ज़िंदा हूँ ये मुश्तहर कीजिए
भूल सकता है भला कौन ये प्यारी आँखें