अकेला Poetry (page 16)

परदेसी

हमीदा शाहीन

तरब से हो आया हूँ और यास की तह तक डूब चुका हूँ

हमीद नसीम

याद माज़ी के चराग़ों को बुझाया न करो

हमीद अलमास

साँसों को कर्ब ज़ीस्त ग़म-ए-बे-पनाह को

हमदुन उसमानी

हर एक आँख को कुछ टूटे ख़्वाब दे के गया

हकीम मंज़ूर

मुझे ऐ रहनुमा अब छोड़ तन्हा

हैरत गोंडवी

तुझे बातों में लाना चाहता हूँ

हैरत गोंडवी

पी कर चैन अगर आया भी कितनी देर को आएगा

हफ़ीज़ मेरठी

आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बरसों यूँ ज़ब्त से हम ने काम लिया

हफ़ीज़ जौनपुरी

आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बरसों यूँ ज़ब्त से हम ने काम लिया

हफ़ीज़ जौनपुरी

कृष्ण कन्हैया

हफ़ीज़ जालंधरी

इक हुस्न-ए-तसव्वुर है जो ज़ीस्त का साथी है

हफ़ीज़ बनारसी

कोई बतलाए कि ये तुर्फ़ा तमाशा क्यूँ है

हफ़ीज़ बनारसी

आ जाओ कि मिल कर हम जीने की बिना डालें

हफ़ीज़ बनारसी

मीरा-जी

हबीब जालिब

तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था

हबीब जालिब

तिरे माथे पे जब तक बल रहा है

हबीब जालिब

गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है

हबीब जालिब

'ग़ालिब'-ओ-'यगाना' से लोग भी थे जब तन्हा

हबीब जालिब

दिल-ए-तन्हा में अब एहसास-ए-महरूमी नहीं शायद

हबीब हैदराबादी

धरती और अम्बर पर दोनों क्या रानाई बाँट रहे थे

ग्यान चन्द

फिरता हूँ मैं घाटी घाटी सहरा सहरा तन्हा तन्हा

ग्यान चन्द

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा

गुलज़ार

अपने साए से चौंक जाते हैं

गुलज़ार

अकेले

गुलज़ार

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा

गुलज़ार

कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है

गुलज़ार

मैं इक मुसाफ़ि-ए-तन्हा मिरा सफ़र तन्हा

गुहर खैराबादी

दर्द-ए-दिल के साथ क्या मेरे मसीहा कर दिया

गुहर खैराबादी

किस को है हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद का दावा देखें

गोपाल मित्तल

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