अकेला Poetry (page 18)

क्यूँ दिया था? बता! मेरी वीरानियों में सहारा मुझे

फरीहा नक़वी

हर एक रास्ते का हम-सफ़र रहा हूँ मैं

फ़ारिग़ बुख़ारी

मोहब्बत का ये रुख़ देखा नहीं था

फ़रहत नदीम हुमायूँ

है वही एक मेरे सिवा और मैं

फ़रहत नदीम हुमायूँ

किसी हालत में भी तन्हा नहीं होने देती

फ़रहत एहसास

ख़ुद-आगही

फ़रहत एहसास

हुई इक ख़्वाब से शादी मिरी तन्हाई की

फ़रहत एहसास

आम है इज़्न कि जो चाहो हवा पर लिख दो

फ़रहान सालिम

न ग़ुरूर है ख़िरद को न जुनूँ में बाँकपन है

फ़रीद जावेद

न ग़ुरूर है ख़िरद को न जुनूँ में बाँकपन है

फ़रीद जावेद

निकल के घर से और मैदाँ में आ के

फ़राज़ सुल्तानपूरी

कभी तुम भीगने आना मिरी आँखों के मौसम में

फ़रह इक़बाल

ख़ूब निभेगी हम दोनों में मेरे जैसा तू भी है

फ़राग़ रोहवी

फटी मश्कें लिए दिन-रात दरिया देखने वाले

फ़क़ीह हैदर

आँख उठाई ही थी कि खाई चोट

फ़ानी बदायुनी

यूँ इंतिक़ाम तुझ से फ़स्ल-ए-बहार लेंगे

फ़ना निज़ामी कानपुरी

तेरी नज़रों पे तसद्दुक़ आज अहल-ए-होश हैं

फ़ना बुलंदशहरी

अँधेरे लाख छा जाएँ उजाला कम नहीं होता

फ़ना बुलंदशहरी

हम ने सहरा को सजाया था गुलिस्ताँ की तरह

फ़ैज़ुल हसन

एक मुद्दत से सर-ए-बाम वो आया भी नहीं

फ़ैज़ुल हसन

लाख बहकाए ये दुनिया हो गया तो हो गया

फ़ैज़ आलम बाबर

हम अहल-ए-क़फ़स तन्हा भी नहीं हर रोज़ नसीम-ए-सुब्ह-ए-वतन

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दर्द आएगा दबे पाँव

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

'शोपीं' का नग़्मा बजता है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कुछ मोहतसिबों की ख़ल्वत में कुछ वाइ'ज़ के घर जाती है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कभी कभी याद में उभरते हैं नक़्श-ए-माज़ी मिटे मिटे से

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

उस का दिल तो अच्छा दिल था

फ़हमीदा रियाज़

एक रात की कहानी

फ़हमीदा रियाज़

मैं यूँ जहाँ के ख़्वाब से तन्हा गुज़र गया

फ़हीम शनास काज़मी

हर आश्ना से उस बिन बेगाना हो रहा हूँ

फ़ाएज़ देहलवी

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