अकेला Poetry (page 17)

अपने अंजाम से डरता हूँ मैं

गोपाल मित्तल

कहीं लोग तन्हा कहीं घर अकेले

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

अकेला दिन है कोई और न तन्हा रात होती है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

किसी को ज़हर दूँगा और किसी को जाम दूँगा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

हुदूद-ए-क़र्या-ए-वहम-ओ-गुमाँ में कोई नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कोई दो-चार नहीं महव-ए-तमाशा सब हैं

ग़ुफ़रान अमजद

कोई दो चार नहीं महव-ए-तमाशा सब हैं

ग़ुफ़रान अमजद

लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और

ग़ालिब

लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और

ग़ालिब

दिल लगा कर लग गया उन को भी तन्हा बैठना

ग़ालिब

मंज़िलें सम्तें बदलती जा रही हैं रोज़ ओ शब

फ़ुज़ैल जाफ़री

तेज़ आँधी रात अँधयारी अकेला राह-रौ

फ़ुज़ैल जाफ़री

फिर कभी ये ख़ता नहीं करना

फ़िरदौस गयावी

इश्क़ अभी से तन्हा तन्हा

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब तो उन की याद भी आती नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी

ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया

फ़िराक़ गोरखपुरी

कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम

फ़िराक़ गोरखपुरी

मैं उस के ख़्वाब में कब जा के देख पाया हूँ

फ़ज़्ल ताबिश

इस कमरे में ख़्वाब रक्खे थे कौन यहाँ पर आया था

फ़ज़्ल ताबिश

हम ने किसी की याद में अक्सर शराब पी

फ़ाज़िल जमीली

और क्या मुझ से कोई साहिब-नज़र ले जाएगा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

कोई नहीं है मेरे जैसा चारों ओर

फ़ातिमा हसन

यादों के सब रंग उड़ा कर तन्हा हूँ

फ़ातिमा हसन

ख़्वाब गिरवी रख दिए आँखों का सौदा कर दिया

फ़ातिमा हसन

ख़ुशबू है और धीमा सा दुख फैला है

फ़ातिमा हसन

जड़ों से सूखता तन्हा शजर है

फ़सीह अकमल

चश्म-ए-हैरत को तअल्लुक़ की फ़ज़ा तक ले गया

फ़सीह अकमल

रात काफ़ी लम्बी थी दूर तक था तन्हा मैं

फ़ारूक़ शफ़क़

नींद क्यूँ नहीं आती

फ़ारूक़ नाज़की

हर नए मोड़ धूप का सहरा

फ़ारूक़ मुज़्तर

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