अंधेरे Poetry (page 8)

मैं अपनी वुसअतों को उस गली में भूल जाता हूँ

अम्बर बहराईची

रात सुब्ह-ए-बहार होगी

अल्ताफ़ अहमद कुरेशी

एक सरमस्ती ओ हैरत है सरापा तारीक

अल्लामा इक़बाल

इबलीस की मजलिस-ए-शूरा

अल्लामा इक़बाल

था जहाँ मदरसा-ए-शीरी-ओ-शाहंशाही

अल्लामा इक़बाल

दिल में चलती हुई जंगों से निकल आऊँगा

अली इमरान

ग़ुंचा ग़ुंचा हँस रहा था, पती पत्ती रो गया

अली अकबर नातिक़

घबराएँ हवादिस से क्या हम जीने के सहारे निकलेंगे

अलीम मसरूर

मस्जिद

अख़्तर-उल-ईमान

उन को बुलाएँ और वो न आएँ तो क्या करें

अख़्तर शीरानी

निकहत-ए-ज़ुल्फ़ से नींदों को बसा दे आ कर

अख़्तर शीरानी

तपिश गुलज़ार तक पहुँची लहू दीवार तक आया

अख़्तर हुसैन जाफ़री

हरीफ़-ए-दास्ताँ करना पड़ा है

अख़्तर होशियारपुरी

नए ज़मानों की चाप तो सर पे आ खड़ी थी

अहमद शहरयार

क़ानून-ए-क़ुदरत

अहमद नदीम क़ासमी

बरस कर खुल गया अब्र-ए-ख़िज़ाँ आहिस्ता आहिस्ता

अहमद मुश्ताक़

दर-अस्ल ये नज़्म लिखी ही नहीं गई

अहमद हमेश

जब तिरी याद के जुगनू चमके

अहमद फ़राज़

तंग तारीक गली में कुत्ता

आदिल मंसूरी

पत्थर पर तस्वीर बना कर

आदिल मंसूरी

बदन पर नई फ़स्ल आने लगी

आदिल मंसूरी

ग़म के हर इक रंग से मुझ को शनासा कर गया

अदीम हाशमी

क़स्बाती लड़कों का गीत

अबरार अहमद

कहीं टूटते हैं

अबरार अहमद

आगे बढ़ने वाले

अबरार अहमद

मैं पहुँचा अपनी मंज़िल तक मगर आहिस्ता आहिस्ता

अब्दुल मन्नान तरज़ी

बाम-ओ-दर की रौशनी फिर क्यूँ बुलाती है मुझे

अब्दुल अहद साज़

लम्हा-ए-तख़्लीक़ बख़्शा उस ने मुझ को भीक में

अब्दुल अहद साज़

ज़र्फ़ है किस में कि वो सारा जहाँ ले कर चले

आज़िम कोहली

हो गए आँगन जुदा और रास्ते भी बट गए

आनन्द सरूप अंजुम

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