तीर Poetry (page 10)

जो भी यहाँ हुआ वो बहुत ही बुरा हुआ

हसीर नूरी

हमारे ख़्वाब सब ताबीर से बाहर निकल आए

हसीब सोज़

आँख की राह से बुझते हुए लम्हे उतरे

हसन निज़ामी

तारीख़ की अदालत

हसन हमीदी

मकीं यहीं का है लेकिन मकाँ से बाहर है

हसन अब्बास रज़ा

दुश्मन को ज़द पर आ जाने दो दशना मिल जाएगा

हसन अब्बास रज़ा

दश्त में मिस्ल सदा के थे

हरबंस तसव्वुर

लैल-ए-शब-ताब चटानों में नहीं

हामिदी काश्मीरी

सहरा में हर तरफ़ है वही शोर-ए-अल-अतश

हामिद हुसैन हामिद

नौ-ब-नौ ये जल्वा-ज़ाई ये जमाल-ए-रंग-रंग

हमीद नसीम

कब इस ज़मीं की सम्त समुंदर पलट कर आए

हकीम मंज़ूर

हो आँख अगर ज़िंदा गुज़रती है न क्या क्या

हकीम मंज़ूर

वहशी थे बू-ए-गुल की तरह इस जहाँ में हम

हैदर अली आतिश

सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या

हैदर अली आतिश

क़द-ए-सनम सा अगर आफ़रीदा होना था

हैदर अली आतिश

मोहब्बत का तिरी बंदा हर इक को ऐ सनम पाया

हैदर अली आतिश

हुबाब-आसा में दम भरता हूँ तेरी आश्नाई का

हैदर अली आतिश

दीवानगी ने क्या क्या आलम दिखा दिए हैं

हैदर अली आतिश

आरिफ़ है वो जो हुस्न का जूया जहाँ में है

हैदर अली आतिश

आख़िर-ए-कार चले तीर की रफ़्तार क़दम

हैदर अली आतिश

यूँ तो हसीन अक्सर होते हैं शान वाले

हफ़ीज़ जौनपुरी

मिज़्गाँ हैं ग़ज़ब अबरू-ए-ख़म-दार के आगे

हफ़ीज़ जौनपुरी

करना जो मोहब्बत का इक़रार समझ लेना

हफ़ीज़ जौनपुरी

हुए इश्क़ में इम्तिहाँ कैसे कैसे

हफ़ीज़ जौनपुरी

देखा जो खा के तीर कमीं-गाह की तरफ़

हफ़ीज़ जालंधरी

इरशाद की याद में

हफ़ीज़ जालंधरी

कोई चारा नहीं दुआ के सिवा

हफ़ीज़ जालंधरी

इक बार फिर वतन में गया जा के आ गया

हफ़ीज़ जालंधरी

अर्ज़-ए-हुनर भी वज्ह-ए-शिकायात हो गई

हफ़ीज़ जालंधरी

अगर मौज है बीच धारे चला चल

हफ़ीज़ जालंधरी

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