तीर Poetry (page 12)

कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को

ग़ालिब

कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तू ने हम-नशीं

ग़ालिब

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ग़ालिब

शिकवे के नाम से बे-मेहर ख़फ़ा होता है

ग़ालिब

शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला

ग़ालिब

माना-ए-दश्त-नवर्दी कोई तदबीर नहीं

ग़ालिब

मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ तिश्ना-काम आऊँ

ग़ालिब

क्यूँकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़

ग़ालिब

इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई

ग़ालिब

हुज़ूर-ए-शाह में अहल-ए-सुख़न की आज़माइश है

ग़ालिब

हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था

ग़ालिब

है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और

ग़ालिब

ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है

ग़ालिब

सर पर कोई आसमान रख दे

गौहर होशियारपुरी

सामने आँखों के घर का घर बने और टूट जाए

गणेश बिहारी तर्ज़

कितने जुमले हैं कि जो रू-पोश हैं यारों के बीच

गणेश बिहारी तर्ज़

तमाम जिस्म की परतें जुदा जुदा करके

फ़िज़ा कौसरी

हो के सर-ता-ब-क़दम आलम-ए-असरार चला

फ़िराक़ गोरखपुरी

टलते हैं कोई हाथ चले या ज़बाँ चले

फ़िदवी लाहौरी

टलते हैं कोई हाथ चले या ज़बाँ चले

फ़िदवी लाहौरी

तुझे हवस हो जो मुझ को हदफ़ बनाने की

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

सराब-ए-जिस्म को सहरा-ए-जाँ में रख देना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

अब आ गए हो तो रफ़्तगाँ को भी याद रखना

फ़य्याज़ तहसीन

हवा ने छीन लिया आ के मेरे होंटों से

फ़व्वाद अहमद

वो इक लम्हा

फ़ातिमा हसन

रुका जवाब की ख़ातिर न कुछ सवाल किया

फ़ातिमा हसन

हाँ कभी रूह को नख़चीर नहीं कर सकता

फ़रताश सय्यद

किसी बहाने भी दिल से अलम नहीं जाता

फ़र्रुख़ जाफ़री

कोई भी शख़्स न हंगामा-ए-मकाँ में मिला

फ़ारूक़ शफ़क़

तराना-ए-रेख़्ता

फ़रहत एहसास

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