तेज Poetry (page 8)
उर्दू-ए-मुअ'ल्ला
सफ़ी लखनवी
तड़प के रात बसर की जो इक मुहिम सर की
सफ़ी लखनवी
जब तेज़ भूक लगी हो
सईदुद्दीन
ग़म रात-दिन रहे तो ख़ुशी भी कभी रही
सईद अख़्तर
ज़वाल के आईने में ज़िंदा अक्स
सईद अहमद
अपने गले पे चलती छुरी का भी ध्यान रख
सादिक़
फिर से लहू लहू दर-ओ-दीवार देख ले
सादिक़
लफ़्ज़ों को सजा कर जो कहानी लिखना
सदफ़ जाफ़री
छुप जाएँ कहीं आ कि बहुत तेज़ है बारिश
सबा इकराम
आवाज़ के पत्थर जो कभी घर में गिरे हैं
सबा इकराम
मंज़िल पे पहुँचने का मुझे शौक़ हुआ तेज़
सबा अकबराबादी
और अभी तेज़ दौड़ना है मुझे
रूही कंजाही
ज़िद हमारी दुआ से होती है
रियाज़ ख़ैराबादी
ये कहाँ से हम गए हैं कहाँ कहें क्या तिरी तग-ओ-ताज़ में
रियाज़ ख़ैराबादी
परा बाँधे सफ़-ए-मिज़्गाँ खड़ी है
रियाज़ ख़ैराबादी
हम भी पिएँ तुम्हें भी पिलाएँ तमाम रात
रियाज़ ख़ैराबादी
हो के बेताब बदल लेते थे अक्सर करवट
रियाज़ ख़ैराबादी
तोहमत-ए-हसरत-ए-पर्वाज़ न मुझ पर बाँधे
रिन्द लखनवी
नादान दिल-फ़रेब मोहब्बत न खा कभी
रिफ़अत सुलतान
कुछ लोग समझने ही को तयार नहीं थे
राज़ी अख्तर शौक़
छेड़ के साज़-ए-ज़रगरी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा है रक़्स में
राज़ी अख्तर शौक़
ज़िंदगी अब इस क़दर सफ़्फ़ाक हो जाएगी क्या
रज़ा मौरान्वी
इस तरह आँखों को नम दिल पर असर करते हुए
रज़ा मौरान्वी
ये दौर-ए-मसर्रत ये तेवर तुम्हारे
रज़ा हमदानी
कितनी सदियों से लम्हों का लोबान जलता रहा
रउफ़ ख़लिश
ये वाक़िआ तो लगे है सुना हुआ सा कुछ
राशिद जमाल फ़ारूक़ी
जंगल की लकड़ियाँ
राशिद अनवर राशिद
समझ रहा है तिरी हर ख़ता का हामी मुझे
राशिद आज़र
सहरा सहरा बात चली है नगरी नगरी चर्चा है
रशीद क़ैसरानी
पानी की तरह रेत के सीने में उतर जा
रशीद क़ैसरानी
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