विसाल Poetry (page 10)

तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़

ग़ुलाम मौला क़लक़

न रहा शिकवा-ए-जफ़ा न रहा

ग़ुलाम मौला क़लक़

हो जुदा ऐ चारा-गर है मुझ को आज़ार-ए-फ़िराक़

ग़ुलाम मौला क़लक़

हिकायत-ए-इश्क़ से भी दिल का इलाज मुमकिन नहीं कि अब भी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मता-ए-बर्ग-ओ-समर वही है शबाहत-ए-रंग-ओ-बू वही है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कहीं मोहब्बत के आसमाँ पर विसाल का चाँद ढल रहा है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

यक़ीन जानिए इस में कोई करामत है

ग़ज़नफ़र

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ग़ालिब

ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है

ग़ालिब

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ग़ालिब

वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ

ग़ालिब

तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो

ग़ालिब

नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच

ग़ालिब

है सब्ज़ा-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़म-कदा

ग़ालिब

गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज

ग़ालिब

गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग

ग़ालिब

गई वो बात कि हो गुफ़्तुगू तो क्यूँकर हो

ग़ालिब

आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे

ग़ालिब

दिल तमाम आईने तीरा कौन रौशन कौन

गौहर होशियारपुरी

ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का पर्दा उठा दिया

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है

फ़िराक़ गोरखपुरी

आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

जफ़ा-ए-यार को हम लुत्फ़-ए-यार कहते हैं

फ़िगार उन्नावी

मालूम करो

फर्रुख यार

ये फुर्क़तों में लम्हा-ए-विसाल कैसे आ गया

फ़रहत नदीम हुमायूँ

उसे ख़बर थी कि हम विसाल और हिज्र इक साथ चाहते हैं

फ़रहत एहसास

हिज्र ओ विसाल चराग़ हैं दोनों तन्हाई के ताक़ों में

फ़रहत एहसास

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