वफ़ा Poetry (page 37)

साँस लेने के लिए ताज़ा हवा भेजी है

हामिद सरोश

मआल-ए-दिल के लिए आज यूँ ख़ुदी तरसे

हामिद मुख़्तार हामिद

हर वफ़ा ना-आश्ना से भी वफ़ा करना पड़ी

हामिद इलाहाबादी

मोहब्बत जादा है मंज़िल नहीं है

हमीद नसीम

वो चाल चल कि ज़माना भी साथ चलने लगे

हमीद नागपुरी

तिरे करम से तिरी बे-रुख़ी से क्या लेना

हमीद नागपुरी

ख़ुद अपने जज़्ब-ए-मोहब्बत की इंतिहा हूँ मैं

हमीद नागपुरी

उन की जफ़ाओं पर भी वफ़ा का हुआ गुमाँ

हमीद जालंधरी

किस वहम में असीर तिरे मुब्तला हुए

हमीद जालंधरी

कल शाम लब-ए-बाम जो वो जल्वा-नुमा था

हमीद जालंधरी

कैसा ग़ज़ब ये ऐ दिल-ए-पुर-जोश कर दिया

हमीद जालंधरी

फिर किसी याद का दरवाज़ा खुला आहिस्ता

हमीद अलमास

ज़िंदगी को न बना लें वो सज़ा मेरे बाद

हकीम नासिर

ऐ दोस्त कहीं तुझ पे भी इल्ज़ाम न आए

हकीम नासिर

इक तो ख़ुद अपनी ग़मगीनी

हैरत शिमलवी

एक तो ख़ुद अपनी ग़मगीनी

हैरत शिमलवी

सुना है ज़ख़्मी-ए-तेग़-ए-निगह का दम निकलता है

हैरत इलाहाबादी

इर्तिकाब-ए-जुर्म शर की बात है

हैदर अली जाफ़री

वही चितवन की ख़ूँ-ख़्वारी जो आगे थी सो अब भी है

हैदर अली आतिश

तेरी जो याद ऐ दिल-ख़्वाह भूला

हैदर अली आतिश

ना-फ़हमी अपनी पर्दा है दीदार के लिए

हैदर अली आतिश

मिरे दिल को शौक़-ए-फ़ुग़ाँ नहीं मिरे लब तक आती दुआ नहीं

हैदर अली आतिश

ग़ैरत-ए-महर रश्क-ए-माह हो तुम

हैदर अली आतिश

फ़र्त-ए-शौक़ उस बुत के कूचे में लगा ले जाएगा

हैदर अली आतिश

बुलबुल गुलों से देख के तुझ को बिगड़ गया

हैदर अली आतिश

सिमटा तिरा ख़याल तो गुल-रंग अश्क था

हफ़ीज़ ताईब

पत्थर में फ़न के फूल खिला कर चला गया

हफ़ीज़ ताईब

यारा-ए-गुफ़्तुगू नहीं आँखों में दम नहीं

हाफ़िज़ लुधियानवी

शो'ला-ए-दर्द ब-उन्वान-ए-तजल्ला ही सही

हाफ़िज़ लुधियानवी

दार-ओ-रसन ने किस को चुना देखते चलें

हफ़ीज़ मेरठी

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