वफ़ा Poetry (page 71)

निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है

आबरू शाह मुबारक

मगर तुम सीं हुआ है आश्ना दिल

आबरू शाह मुबारक

हुस्न पर है ख़ूब-रूयाँ में वफ़ा की ख़ू नहीं

आबरू शाह मुबारक

चंचलाहट में तू ममोला है

आबरू शाह मुबारक

नुमायाँ जब वो अपने ज़ेहन की तस्वीर करता है

अबरार किरतपुरी

किस का है जुर्म किस की ख़ता सोचना पड़ा

अबरार आज़मी

ख़याल लम्स का कार-ए-सवाब जैसा था

अबरार आज़मी

मुक़द्दर में साहिल कहाँ है मियाँ

आबिद मुनावरी

अगले पड़ाव पर यूँही ख़ेमा लगाओगे

आबिद मुनावरी

पाबंद हर जफ़ा पे तुम्हारी वफ़ा के हैं

अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी

का'बा है कभी तो कभी बुत-ख़ाना बना है

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

बड़ा मुख़्लिस हूँ पाबंद-ए-वफ़ा हूँ

अब्दुल्लाह कमाल

तर्क करनी थी हर इक रस्म-ए-जहाँ

अब्दुल्लाह जावेद

फूल के लायक़ फ़ज़ा रखनी ही थी

अब्दुल्लाह जावेद

ये सानेहा भी हो गया है रस्ते में

अब्दुल वहाब सुख़न

क्या क्या सुपुर्द-ए-ख़ाक हुए नामवर तमाम

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

कोई नज़्र-ए-ग़म-ए-हालात न होने पाए

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

काश समझते अहल-ए-ज़माना

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

करते नहीं जफ़ा भी वो तर्क-ए-वफ़ा के साथ

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

जीत कर बाज़ी-ए-उल्फ़त को भी हारा जाए

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

क्यूँ ख़फ़ा तू है क्या कहा मैं ने

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

ग़ैर के दिल पे तू ऐ यार ये क्या बाँधे है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

दोश-ब-दोश दोश था मुझ से बुत-ए-करिश्मा-कोश

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

दिलबर ये वो है जिस ने दिल को दग़ा दिया है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

तुझ को अग़राज़-ए-जहाँ से मावरा समझा था मैं

अब्दुल रहमान बज़्मी

कैसे रखेंगे सर पे किसी का उधार हम

अब्दुल मतीन नियाज़

पा के तूफ़ाँ का इशारा दरिया

अब्दुल मन्नान तरज़ी

मुद्दआ'-ओ-आरज़ू शौक़-ए-तमन्ना आप हैं

अब्दुल मन्नान तरज़ी

मिरी निगाह को जल्वों का हौसला दे दो

अब्दुल मन्नान तरज़ी

मेरी आँखों में आँसू प्यारे

अब्दुल मन्नान तरज़ी

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