वफ़ा Poetry (page 35)

पैरव-ए-मस्लक-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा होते हैं

हसरत मोहानी

मुक़र्रर कुछ न कुछ इस में रक़ीबों की भी साज़िश है

हसरत मोहानी

लुत्फ़ की उन से इल्तिजा न करें

हसरत मोहानी

क्या काम उन्हें पुर्सिश-ए-अरबाब-ए-वफ़ा से

हसरत मोहानी

घटेगा तेरे कूचे में वक़ार आहिस्ता आहिस्ता

हसरत मोहानी

दुआ में ज़िक्र क्यूँ हो मुद्दआ का

हसरत मोहानी

चाहत मिरी चाहत ही नहीं आप के नज़दीक

हसरत मोहानी

बाम पर आने लगे वो सामना होने लगा

हसरत मोहानी

और तो पास मिरे हिज्र में क्या रक्खा है

हसरत मोहानी

आप ने क़द्र कुछ न की दिल की

हसरत मोहानी

हर्फ़-ए-इंकार कि इक़रार-ए-वफ़ा था क्या था

हसरत देवबंदी

फिरी सी देखता हूँ इस चमन की कुछ हवा बुलबुल

हसरत अज़ीमाबादी

हम आप को तो इश्क़ में बर्बाद करेंगे

हसरत अज़ीमाबादी

गर इश्क़ से वाक़िफ़ मरे महबूब न होता

हसरत अज़ीमाबादी

बे-वफ़ा गो मिले न तू मुझ को

हसरत अज़ीमाबादी

जो भी यहाँ हुआ वो बहुत ही बुरा हुआ

हसीर नूरी

किसे हम अपना कहें कोई ग़म-गुसार नहीं

हसीब रहबर

ठहरे पानी को वही रेत पुरानी दे दे

हसन रिज़वी

फिर नए ख़्वाब बुनें फिर नई रंगत चाहें

हसन रिज़वी

तल्ख़ियाँ रह जाएँगी लफ़्ज-ए-वफ़ा रह जाएगा

हसन निज़ामी

मैं एक बाब था अफ़साना-ए-वफ़ा का मगर

हसन नईम

क़सीदा तुझ से ग़ज़ल तुझ से मर्सिया तुझ से

हसन नईम

ना-उमीदी ने यूँ सताया था

हसन नईम

मैं जनम जनम का अनीस हूँ किसी तौर दिल में बसा मुझे

हसन नईम

लुत्फ़-ए-आग़ाज़ मिला लज़्ज़त-ए-अंजाम के बा'द

हसन नईम

किसी हबीब ने लफ़्ज़ों का हार भेजा है

हसन नईम

दिल में उतरोगे तो इक जू-ए-वफ़ा पाओगे

हसन नईम

बयान-ए-शौक़ बना हर्फ़-ए-इज़्तिराब बना

हसन नईम

बसर हो यूँ कि हर इक दर्द हादिसा न लगे

हसन नईम

आँखों में बस रहा है अदा के बग़ैर भी

हसन नईम

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