वसल Poetry (page 26)

दवाम-ए-वस्ल का ख़्वाब

अबरार अहमद

ज़मीं नहीं ये मिरी आसमाँ नहीं मेरा

अबरार अहमद

कि जैसे कुंज-ए-चमन से सबा निकलती है

अबरार अहमद

कहीं पर सुब्ह रखता हूँ कहीं पर शाम रखता हूँ

अबरार अहमद

हमें ख़बर नहीं कुछ कौन है कहाँ कोई है

अबरार अहमद

मक़ाम-ए-वस्ल तो अर्ज़-ओ-समा के बीच में है

अभिषेक शुक्ला

फ़सील-ए-जिस्म गिरा दे मकान-ए-जाँ से निकल

अभिषेक शुक्ला

चुप

अब्दुर्रशीद

पाबंद हर जफ़ा पे तुम्हारी वफ़ा के हैं

अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी

वादा-ए-वस्ल है लज़्ज़त-ए-इंतिज़ार उठा

अब्दुल्लाह कमाल

अगर नहीं क़स्द ऐ ज़ालिम मिरे दिल के सताने का

अब्दुल वहाब यकरू

नए हैं वस्ल के मौसम मोहब्बतें भी नई

अब्दुल वहाब सुख़न

क्यूँ तू रोता है दिला आने दे रोज़-ए-वस्ल को

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

तुम्हारी चश्म ने मुझ सा न पाया

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

सुन रख ओ ख़ाक में आशिक़ को मिलाने वाले

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

फूली है शफ़क़ गो कि अभी शाम नहीं है

अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

उस से उम्मीद-ए-वफ़ा ऐ दिल-ए-नाशाद न कर

अब्दुल अलीम आसि

दरख़्त रूह के झूमे परिंद गाने लगे

अब्दुल अहद साज़

हिज्र को हौसला और वस्ल को फ़ुर्सत दरकार

अब्बास ताबिश

पस-ए-ग़ुबार मदद माँगते हैं पानी से

अब्बास ताबिश

अब परिंदों की यहाँ नक़्ल-ए-मकानी कम है

अब्बास ताबिश

आ कि चाहत वस्ल की फिर से बड़ी पुर-ज़ोर है

आज़िम कोहली

ज़ख़्म-ए-दिल हम दिखा नहीं सकते

आसी ग़ाज़ीपुरी

तिरे कूचे का रहनुमा चाहता हूँ

आसी ग़ाज़ीपुरी

क़तरा वही कि रू-कश-ए-दरिया कहें जिसे

आसी ग़ाज़ीपुरी

हर शय आनी-जानी है

आनन्द सरूप अंजुम

वो कहते हैं उट्ठो सहर हो गई

आग़ा अकबराबादी

तिरे जलाल से ख़ुर्शीद को ज़वाल हुआ

आग़ा अकबराबादी

सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिलते जो दौलत माँगता

आग़ा अकबराबादी

सर्व-क़द लाला-रुख़ ओ ग़ुंचा-दहन याद आया

आग़ा अकबराबादी

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