वसल Poetry (page 1)

हवाओं में दिलों का कारवाँ है

अल्का मिश्रा

कुछ ऐसे वस्ल की रातें गुज़ारी है मैं ने

अमित सतपाल तनवर

मज़ाक़ सहना नहीं है हँसी नहीं करनी

स्वप्निल तिवारी

ऐ लाहौर

जीलानी कामरान

वो आलम ख़्वाब का था

हारिस ख़लीक़

रक्खा नहीं ग़ुर्बत ने किसी इक का भरम भी

ज़ुहूर नज़र

जबीं से नाख़ुन-ए-पा तक दिखाई क्यूँ नहीं देता

ज़ुबैर शिफ़ाई

वो बाद-ए-गर्म था बाद-ए-सबा के होते हुए

ज़ुबैर रिज़वी

मुझे तुम शोहरतों के दरमियाँ गुमनाम लिख देना

ज़ुबैर रिज़वी

अब उस का वस्ल महँगा चल रहा है

ज़ुबैर अली ताबिश

राहत-ए-वस्ल बिना हिज्र की शिद्दत के बग़ैर

ज़िया ज़मीर

जी रहा हूँ प क्या यूँही जीता रहूँ

ज़िया जालंधरी

बिल्ली

ज़ेहरा निगाह

पेच दे ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं न कहीं

ज़ेबा

क्या मिला क़ैस को गर्द-ए-रह-ए-सहरा हो कर

ज़ेबा

किस शेर में सना-ए-रुख़-ए-मह-जबीं नहीं

ज़ेबा

फ़ुर्क़त में कार-ए-वस्ल लिया वाह वाह से

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

अच्छा हुआ कि दम शब-ए-हिज्राँ निकल गया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

कभी इश्क़ साज़-ए-हयात था कभी सोज़-ए-दिल ने जला दिया

ज़ाहिदा ज़ैदी

तख़्ईल का दर खोले हुए शाम खड़ी है

ज़ाहिदा ज़ैदी

यूँ ही हम दर्द अपना खो रहे हैं

ज़हीर रहमती

बहुत कुछ वस्ल के इम्कान होते

ज़हीर रहमती

वो महफ़िलें वो मिस्र के बाज़ार क्या हुए

ज़हीर काश्मीरी

जमाल पा के तब-ओ-ताब-ए-ग़म यगाना हुआ है

ज़हीर फ़तेहपूरी

दर्द इन दिनों यूँ चेहरा-ए-आलम पे सजा है

ज़हीर फ़तेहपूरी

क़हर है ज़हर है अग़्यार को लाना शब-ए-वस्ल

ज़हीर देहलवी

उन को हाल-ए-दिल-ए-पुर-सोज़ सुना कर उट्ठे

ज़हीर देहलवी

रक़ीबों को हमराह लाना न छोड़ा

ज़हीर देहलवी

इश्क़ और इश्क़-ए-शोला-वर की आग

ज़हीर देहलवी

हाए उस शोख़ का अंदाज़ से आना शब-ए-वस्ल

ज़हीर देहलवी

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