वसल Poetry (page 2)

बिगड़ कर अदू से दिखाते हैं आप

ज़हीर देहलवी

ऐसे की मोहब्बत को मोहब्बत न कहेंगे

ज़हीर देहलवी

लबों पर प्यास सब के बे-कराँ है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

लबों पर प्यास सब के बे-कराँ है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

मुश्किल-पसंद ही सही मैं वस्ल में मगर

ज़फ़र इक़बाल

तिलिस्म-ए-होश-रुबा में पतंग उड़ती है

ज़फ़र इक़बाल

न उस को भूल पाए हैं न हम ने याद रक्खा है

ज़फ़र इक़बाल

मिलूँ उस से तो मिलने की निशानी माँग लेता हूँ

ज़फ़र इक़बाल

ईमाँ के साथ ख़ामी-ए-ईमाँ भी चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

इल्ज़ाम एक ये भी उठा लेना चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

हवा बदल गई उस बेवफ़ा के होने से

ज़फ़र इक़बाल

तू ने क्यूँ हम से तवक़्क़ो न मुसाफ़िर रक्खी

ज़फ़र अज्मी

साँस लेने को ही जीना नहीं कहते हैं 'ज़फ़र'

यूसुफ़ ज़फ़र

वक़्त बस रेंगता है उम्र के साथ

यासमीन हबीब

ख़्वाब ता'बीर में बदलता है

यशब तमन्ना

कमाल-ए-शौक़-ए-सफ़र भी उधर ही जाता है

यशब तमन्ना

ऐसा भी नहीं दर्द ने वहशत नहीं की है

यशब तमन्ना

सरीर-ए-सल्तनत से आस्तान-ए-यार बेहतर था

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

रौशन तमाम काबा ओ बुत-ख़ाना हो गया

यगाना चंगेज़ी

क़ब्र पर बाद-ए-फ़ना आइएगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

बच कर कहाँ मैं उन की नज़र से निकल गया

वज़ीर अली सबा लखनवी

नज़्अ' में प्यार से क्यूँ पूछते हो तुम मुझ को

वसीम ख़ैराबादी

हम हवा-ए-वस्ल में याँ तक फिरे

वलीउल्लाह मुहिब

लाला-रू तुम ग़ैर के पाले पड़े

वलीउल्लाह मुहिब

देखा जो कुछ जहाँ में कोई दम ये सब नहीं

वलीउल्लाह मुहिब

मेरे अश्कों की गई थी रेल वीराने पे क्या गुज़रा

वली उज़लत

इश्क़ में सब्र-ओ-रज़ा दरकार है

वली मोहम्मद वली

आज सरसब्ज़ कोह ओ सहरा है

वली मोहम्मद वली

ज़ोहरा सुहैल शम्स ख़ुर बद्र बहा तू कौन है

वाजिद अली शाह अख़्तर

सहे ग़म पए रफ़्तगाँ कैसे कैसे

वाजिद अली शाह अख़्तर

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