वसल Poetry (page 3)

मोहब्बत के तआ'क़ुब में थकन से चूर होने तक

वजीह सानी

तल्ख़ी-कश-ए-नौमीदी-ए-दीदार बहुत हैं

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

किसी सूरत से उस महफ़िल में जा कर

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

परोमीथियस

वहीद अख़्तर

उस हिज्र पे तोहमत कि जिसे वस्ल की ज़िद हो

विपुल कुमार

अजब सी आज-कल मैं इक परेशानी में हूँ यारो

विनीत आश्ना

वो ध्यान की राहों में जहाँ हम को मिलेगा

उर्फ़ी आफ़ाक़ी

था पस-ए-मिज़्गान-तर इक हश्र बरपा और भी

तौसीफ़ तबस्सुम

हुए हो किस लिए बरहम अज़ीज़म

तसनीम आबिदी

क्या क्या मज़े से रात की अहद-ए-शबाब में

मीर तस्कीन देहलवी

हुए थे भाग के पर्दे में तुम निहाँ क्यूँकर

मीर तस्कीन देहलवी

सारी तरतीब-ए-ज़मानी मिरी देखी हुई है

तारिक़ नईम

इज़्हार-ए-जुनूँ बर-सर-ए-बाज़ार हुआ है

तनवीर अंजुम

न पहुँचा साथ यारान-ए-सफ़र की ना-तवानी से

तालिब अली खान ऐशी

काली घटा में चाँद ने चेहरा छुपा लिया

ताज सईद

ला-यख़ुल

तहसीन फ़िराक़ी

क़िस्सा-ए-शब

ताबिश कमाल

किस किस तरह की दिल में गुज़रती हैं हसरतें

ताबाँ अब्दुल हई

खोता ही नहीं है हवस-ए-मतअम-ओ-मलबस

ताबाँ अब्दुल हई

इन ज़ालिमों को जौर सिवा काम ही नहीं

ताबाँ अब्दुल हई

ग़म में रोता हूँ तिरे सुब्ह कहीं शाम कहीं

ताबाँ अब्दुल हई

जिस तरफ़ बैठते थे वस्ल में आप

तअशशुक़ लखनवी

याद-ए-अय्याम कि हम-रुतबा-ए-रिज़वाँ हम थे

तअशशुक़ लखनवी

न डरे बर्क़ से दिल की है कड़ी मेरी आँख

तअशशुक़ लखनवी

मुँह जो फ़ुर्क़त में ज़र्द रहता है

तअशशुक़ लखनवी

काश ऐसी भी कोई साअ'त हो

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

साहिल पर आ के लगती है टक्कर सफ़ीने को

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

थी आसमाँ पे मेरी चढ़ाई तमाम रात

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

हम ने सौ सौ तरह बनाई बात

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

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