साहिल पर आ के लगती है टक्कर सफ़ीने को
हिज्राँ से वस्ल में है सिवा दिल की एहतियात
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मोहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का
अफ़्साना-ए-मजनूँ से नहीं कम मिरा क़िस्सा
यहाँ काल से है तरह तरह की तकलीफ़
रोने ने मिरे सैकड़ों घर ढा दिये लेकिन
भला क्या ता'ना दूँ ज़ुहहाद को ज़ुहद-ए-रियाई का
कलाम-ए-सख़्त कह कह कर वो क्या हम पर बरसते हैं
वाइ'ज़ ओ शैख़ सभी ख़ूब हैं क्या बतलाऊँ
गो कुछ भी वो मुँह से नहीं फ़रमाते हैं
फूँक दो याँ गर ख़स-ओ-ख़ाशाक हैं
मुहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का
जाँ-फ़िशानी का वाँ हिसाब अबस
है आईना-ख़ाने में तिरा ज़ौक़-फ़ज़ा रक़्स