वसल Poetry (page 5)

काफ़िर हुआ हूँ रिश्ता-ए-ज़ुन्नार की क़सम

सिराज औरंगाबादी

जिस कूँ तुझ ग़म सीं दिल-शिगाफ़ी है

सिराज औरंगाबादी

जिस दिन सीं मैं यार बूझता हूँ

सिराज औरंगाबादी

जान ओ दिल सीं मैं गिरफ़्तार हूँ किन का उन का

सिराज औरंगाबादी

हम हैं मुश्ताक़-ए-जवाब और तुम हो उल्फ़त सीं बईद

सिराज औरंगाबादी

हर हर वरक़ पे क्यूँ कि लिखूँ दास्तान-ए-हिज्र

सिराज औरंगाबादी

हमारे पास जानाँ आन पहुँचा

सिराज औरंगाबादी

वीराँ बहुत है ख़्वाब-महल जागते रहो

सिराज अजमली

जागते दिन की गली में रात आँखें मल रही है

सिदरा सहर इमरान

अजनबी राह-गुज़र

सिद्दीक़ कलीम

फ़िराक़ ओ वस्ल से हट कर कोई रिश्ता हमारा हो

सिद्दीक़ शाहिद

मुद्दतों में घर हमारे आज यार आ ही गया

बाबू सि द्दीक़ निज़ामी

ख़ुदा करे कि नज़र कामयाब हो जाए

बाबू सि द्दीक़ निज़ामी

ऐ रश्क-ए-महर कोई भी तुझ सा हसीं नहीं

श्याम सुंदर लाल बर्क़

घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना

शुजा ख़ावर

गरचे बादल पानी बरसाता हुआ घर घर फिरा

शुजा ख़ावर

चलो ये तो हादसा हो गया कि वो साएबान नहीं रहा

शुजा ख़ावर

असर में देखिए अब कौन कम निकलता है

शुजा ख़ावर

जाने किस किस की तवज्जोह का तमाशा देखा

शोहरत बुख़ारी

हासिल-ए-इंतिज़ार कुछ भी नहीं

शोहरत बुख़ारी

कुछ अकेली नहीं मेरी क़िस्मत

शिबली नोमानी

है ऐन-ए-वस्ल में भी मिरी चश्म सू-ए-दर

ज़ौक़

हंगामा गर्म हस्ती-ए-ना-पाएदार का

ज़ौक़

न कोई ख़्वाब न माज़ी ही मेरे हाल के पास

शहपर रसूल

था ग़ैर का जो रंज-ए-जुदाई तमाम शब

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

शब वस्ल की भी चैन से क्यूँकर बसर करें

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

मर गए हैं जो हिज्र-ए-यार में हम

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

मैं वस्ल में भी 'शेफ़्ता' हसरत-तलब रहा

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

इश्क़ की मेरे जो शोहरत हो गई

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

अब तेरे इंतिज़ार की आदत नहीं रही

शाज़िया अकबर

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