है ऐन-ए-वस्ल में भी मिरी चश्म सू-ए-दर
लपका जो पड़ गया है मुझे इंतिज़ार का
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बाक़ी है दिल में शैख़ के हसरत गुनाह की
वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें
पीर-ए-मुग़ाँ के पास वो दारू है जिस से 'ज़ौक़'
अज़ीज़ो इस को न घड़ियाल की सदा समझो
देख छोटों को है अल्लाह बड़ाई देता
ऐ 'ज़ौक़' देख दुख़्तर-ए-रज़ को न मुँह लगा
मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे
नाज़ है गुल को नज़ाकत पे चमन में ऐ 'ज़ौक़'
हम हैं और शुग़्ल-ए-इश्क़-बाज़ी है
फिर मुझे ले चला उधर देखो
ऐ शम्अ तेरी उम्र-ए-तबीई है एक रात
महफ़िल में शोर-ए-क़ुलक़ुल-ए-मीना-ए-मुल हुआ