मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे
न दवा याद रहे और न दुआ याद रहे
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हो उम्र-ए-ख़िज़्र भी तो हो मालूम वक़्त-ए-मर्ग
कोई इन तंग-दहानों से मोहब्बत न करे
हम रोने पे आ जाएँ तो दरिया ही बहा दें
तवाज़ो का तरीक़ा साहिबो पूछो सुराही से
दूद-ए-दिल से है ये तारीकी मिरे ग़म-ख़ाना में
बा'द रंजिश के गले मिलते हुए रुकता है दिल
एहसान ना-ख़ुदा का उठाए मिरी बला
मिरा घर तेरी मंज़िल गाह हो ऐसे कहाँ तालेअ'
'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से
दरिया-ए-अश्क चश्म से जिस आन बह गया
ख़ूब रोका शिकायतों से मुझे