वहशत Poetry (page 21)

टुकड़े नहीं हैं आँसुओं में दिल के चार पाँच

ज़फ़र

तुफ़्ता-जानों का इलाज ऐ अहल-ए-दानिश और है

ज़फ़र

न दाइम ग़म है ने इशरत कभी यूँ है कभी वूँ है

ज़फ़र

देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़

ज़फ़र

भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ

ज़फ़र

फ़िक्र-ए-अहल-ए-हुनर पे बैठी है

बद्र वास्ती

उस आँख से वहशत की तासीर उठा लाया

अज़्म बहज़ाद

दिल सोया हुआ था मुद्दत से ये कैसी बशारत जागी है

अज़्म बहज़ाद

बहुत क़रीने की ज़िंदगी थी अजब क़यामत में आ बसा हूँ

अज़्म बहज़ाद

सोज़िश-ए-ग़म के सिवा काहिश-ए-फ़ुर्क़त के सिवा

अज़ीज़ वारसी

सफ़र मुदाम सफ़र

अज़ीज़ तमन्नाई

कंफ़ेशन

अज़ीज़ क़ैसी

ये किस वहशत-ज़दा लम्हे में दाख़िल हो गए हैं

अज़ीज़ नबील

ये किस मक़ाम पे लाया गया ख़ुदाया मुझे

अज़ीज़ नबील

न जाने कैसी महरूमी पस-ए-रफ़्तार चलती है

अज़ीज़ नबील

मोजज़े का दर खुला और इक असा रौशन हुआ

अज़ीज़ नबील

मिरा सवाल है ऐ क़ातिलान-ए-शब तुम से

अज़ीज़ नबील

जिस तरफ़ चाहूँ पहुँच जाऊँ मसाफ़त कैसी

अज़ीज़ नबील

दिल आया इस तरह आख़िर फ़रे‌‌‌‌ब-ए-साज़-ओ-सामाँ में

अज़ीज़ लखनवी

देख कर हर दर-ओ-दीवार को हैराँ होना

अज़ीज़ लखनवी

न फ़ासले कोई निकले न क़ुर्बतें निकलीं

अज़ीज़ हामिद मदनी

मिरी आँखें गवाह-ए-तल'अत-ए-आतिश हुईं जल कर

अज़ीज़ हामिद मदनी

हज़ार वक़्त के परतव-नज़र में होते हैं

अज़ीज़ हामिद मदनी

हवा आशुफ़्ता-तर रखती है हम आशुफ़्ता-हालों को

अज़ीज़ हामिद मदनी

एक-आध हरीफ़-ए-ग़म-ए-दुनिया भी नहीं था

अज़ीज़ हामिद मदनी

ऐ शहर-ए-ख़िरद की ताज़ा हवा वहशत का कोई इनआम चले

अज़ीज़ हामिद मदनी

शहर गुम-सुम रास्ते सुनसान घर ख़ामोश हैं

अज़हर नक़वी

चाक-ए-दामान-ए-क़बा दाग़-ए-जुनूँ-साज़ बहुत

अज़हर नक़वी

अफ़्सुर्दगी-ए-दर्द-ए-फ़राक़त है सहर तक

अज़हर नक़वी

मुझ को वहशत हुई मिरे घर से

अज़हर इक़बाल

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