वहशत Poetry (page 22)
शुरू-ए-इश्क़ में लोगों ने इतनी शिद्दत की
अज़हर इनायती
गर इक़्तिदार-ए-सुकूँ इक़्तिदार-ए-वहशत है
अज़हर हाश्मी
पंछियों की किसी क़तार के साथ
अज़हर अब्बास
मिरी कहानी तिरी कहानी से मुख़्तलिफ़ है
अज़हर अब्बास
हवा-ए-तेज़ के आगे कहाँ रहेगा कोई
अज़हर अब्बास
कभी मिली जो तिरे दर्द की नवा मुझ को
आज़ाद गुलाटी
ज़ब्त करना न कभी ज़ब्त में वहशत करना
अय्यूब ख़ावर
न कोई दिन न कोई रात इंतिज़ार की है
अय्यूब ख़ावर
न कोई दिन न कोई रात इंतिज़ार की है
अय्यूब ख़ावर
ख़ुश बहुत आते हैं मुझ को रास्ते दुश्वार से
औरंगज़ेब
हवस ने मुझ से पूछा था तुम्हारा क्या इरादा है
औरंगज़ेब
वो बात जिस से ये डर था खुली तो जाँ लेगी
आतिफ़ ख़ान
मैं कि ख़ुद अपने ख़यालात का ज़िंदानी हूँ
अतहर नादिर
दिल तो बरसाता है हर रोज़ ही ग़म के सावन
अतहर अज़ीज़
रात वहशत से गुरेज़ाँ था मैं आहू की तरह
अता तुराब
तुझ को ख़िफ़्फ़त से बचा लूँ पानी
अता आबिदी
पस-ए-दीवार हुज्जत किस लिए है
अता आबिदी
नौ-जवान ख़ातून से
असरार-उल-हक़ मजाज़
अँधेरी रात का मुसाफ़िर
असरार-उल-हक़ मजाज़
आवारा
असरार-उल-हक़ मजाज़
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
असरार-उल-हक़ मजाज़
निगाह-ए-लुत्फ़ मत उठ ख़ूगर-ए-आलाम रहने दे
असरार-उल-हक़ मजाज़
आओ अब मिल के गुलिस्ताँ को गुल्सिताँ कर दें
असरार-उल-हक़ मजाज़
ज़िंदगी उलझी है बिखरे हुए गेसू की तरह
असरा रिज़वी
नए पैकर नए साँचे में ढलना चाहता हूँ मैं
असलम महमूद
जल रहा हूँ तो अजब रंग ओ समाँ है मेरा
असलम महमूद
नज़्म
आसिमा ताहिर
सामने रह कर न होना मसअला मेरा भी है
आसिम वास्ती
उम्र सारी तिरी चाहत में बितानी पड़ जाए
अासिफ़ शफ़ी
कश्मकश में हैं तिरी ज़ुल्फ़ों के ज़िंदानी हनूज़
अश्क अमृतसरी
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