दिल तो बरसाता है हर रोज़ ही ग़म के सावन

दिल तो बरसाता है हर रोज़ ही ग़म के सावन

फिर भी बुझते नहीं यादों के सुलगते ईंधन

ज़िंदगी ख़्वाबों की चिलमन में यूँ इठलाती है

जैसे सखियों में घिरी हो कोई शर्मीली दुल्हन

अब तो हर रोज़ ही इक आँच नई उठती है

ये मिरा जिस्म न बन जाए दहकता मदफ़न

इस से पहले कि सबा आँख-मिचोली खेले

बंद कर दो दर-ए-उम्मीद का हर हर रौज़न

शब के आईने में तस्वीर-ए-तमन्ना देखो

अक्स दिखलाएगा क्या तुम को सहर का दर्पन

इस क़दर भी तो सताओ न बहकते ख़्वाबो

दिल ताबीर की रुक जाए लरज़ती धड़कन

है वो वहशत कि हवा भी नहीं चलती 'अतहर'

बन गया कितना भयानक ये वफ़ा का आँगन

(661) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Dil To Barsata Hai Har Roz Hi Gham Ke Sawan In Hindi By Famous Poet Athar Aziz. Dil To Barsata Hai Har Roz Hi Gham Ke Sawan is written by Athar Aziz. Complete Poem Dil To Barsata Hai Har Roz Hi Gham Ke Sawan in Hindi by Athar Aziz. Download free Dil To Barsata Hai Har Roz Hi Gham Ke Sawan Poem for Youth in PDF. Dil To Barsata Hai Har Roz Hi Gham Ke Sawan is a Poem on Inspiration for young students. Share Dil To Barsata Hai Har Roz Hi Gham Ke Sawan with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.