वहशत Poetry (page 19)

इक़बाल

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

चश्म-ए-मयगूँ ज़रा इधर कर दे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जिस्म थकता नहीं चलने से कि वहशत का सफ़र

फ़ैसल अजमी

हर्फ़ अपने ही मआनी की तरह होता है

फ़ैसल अजमी

चार-सू है बड़ी वहशत का समाँ

फ़हमीदा रियाज़

उस ने पूछा भी मगर हाल छुपाए गए हम

फ़हीम शनास काज़मी

उसे ये हक़ है कि वो मुझ से इख़्तिलाफ़ करे

एजाज़ रहमानी

निशान-ए-ज़िंदगी

एजाज़ गुल

इश्क़ की दुनिया में इक हंगामा बरपा कर दिया

एहसान दानिश

आज भड़की रग-ए-वहशत तिरे दीवानों की

एहसान दानिश

ज़हर बीमार को मुर्दे को दवा दी जाए

दिलावर फ़िगार

मिरी बे-क़रारी मिरी आह-ओ-ज़ारी ये वहशत नहीं है तो फिर और क्या है

द्वारका दास शोला

पर्दा-दार हस्ती थी ज़ात के समुंदर में

दत्तात्रिया कैफ़ी

कहानी एक रात की

दानिश फ़राज़ी

हो सके क्या अपनी वहशत का इलाज

दाग़ देहलवी

चाक हो पर्दा-ए-वहशत मुझे मंज़ूर नहीं

दाग़ देहलवी

उस से क्या ख़ाक हम-नशीं बनती

दाग़ देहलवी

पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह

दाग़ देहलवी

कौन सा ताइर-ए-गुम-गश्ता उसे याद आया

दाग़ देहलवी

फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं

दाग़ देहलवी

दिल परेशान हुआ जाता है

दाग़ देहलवी

समंदर का सुकूत

चन्द्रभान ख़याल

ख़ाक-ए-हिंद

चकबस्त ब्रिज नारायण

मैं जब ख़ुद से बिछड़ती हूँ

बुशरा एजाज़

इस क़दर बढ़ गई वहशत तिरे दीवाने की

बूम मेरठी

साज़-ए-हस्ती का अजब जोश नज़र आता है

बिस्मिल इलाहाबादी

मिल चुका महफ़िल में अब लुत्फ़-ए-शकेबाई मुझे

बिस्मिल इलाहाबादी

दहशत-ज़दा ज़मीं पर वहशत भरे मकाँ ये

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

दीवार-ओ-दर में सिमटा इक लम्स काँपता है

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

देता था जो साया वो शजर काट रहा है

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

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