वहशत Poetry (page 18)

रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो

फ़िराक़ गोरखपुरी

आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

ख़िज़ाँ का रंग दरख़्तों पे आ के बैठ गया

फ़ाज़िल जमीली

अपने होने के जो आसार बनाने हैं मुझे

फ़ाज़िल जमीली

मैं कहाँ आया हूँ लाए हैं तिरी महफ़िल में

फ़े सीन एजाज़

ख़र्च जब हो गई जज़्बों की रक़म आप ही आप

फ़े सीन एजाज़

सुकून-ए-दिल के लिए इश्क़ तो बहाना था

फ़ातिमा हसन

मिरी ज़मीं पे लगी आप के नगर में लगी

फ़ातिमा हसन

जिन ख़्वाहिशों को देखती रहती थी ख़्वाब में

फ़ातिमा हसन

जिन ख़्वाहिशों को देखती रहती थी ख़्वाब में

फ़ातिमा हसन

जो तू नहीं है तो लगता है अब कि तू क्या है

फ़सीह अकमल

ऐ मरकज़-ए-ख़याल बिखरने लगा हूँ मैं

फ़ारूक़ नाज़की

ए मरकज़-ए-ख़याल बिखरने लगा हूँ में

फ़ारूक़ नाज़की

वो अगर अब भी कोई अहद निभाना चाहे

फरीहा नक़वी

ऐ मिरी ज़ात के सुकूँ आ जा

फरीहा नक़वी

दश्त-ए-वहशत ने फिर पुकारा है

फ़रहत शहज़ाद

न दौलत की तलब थी और न दौलत चाहिए है

फ़रहत नदीम हुमायूँ

मोहब्बत का सिला-कार-ए-मोहब्बत से नहीं मिलता

फ़रहत एहसास

दिल ने इमदाद कभी हस्ब-ए-ज़रूरत नहीं दी

फ़रहत एहसास

ख़याल आतिशीं ख़्वाबीदा सूरतें दी हैं

फ़रहत अब्बास

मोहब्बत का दिया ऐसे बुझा था

फ़रह इक़बाल

एक मुद्दत से यहाँ ठहरा हुआ पानी है

फ़रह इक़बाल

हम से तहज़ीब का दामन नहीं छोड़ा जाता

फ़राग़ रोहवी

दिन में भी हसरत-ए-महताब लिए फिरते हैं

फ़राग़ रोहवी

क्यूँ न नैरंग-ए-जुनूँ पर कोई क़ुर्बां हो जाए

फ़ानी बदायुनी

ख़ुद मसीहा ख़ुद ही क़ातिल हैं तो वो भी क्या करें

फ़ानी बदायुनी

हर तबस्सुम को चमन में गिर्या-सामाँ देख कर

फ़ानी बदायुनी

उन के जल्वों पे हमा-वक़्त नज़र होती है

फ़ना बुलंदशहरी

तसव्वुर में कोई आया सुकून-ए-क़ल्ब-ओ-जाँ हो कर

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

ये मातम-ए-वक़्त की घड़ी है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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