वहशत Poetry (page 16)

वस्ल आसान है क्या मुश्किल है

हफ़ीज़ जौनपुरी

उन को दिल दे के पशेमानी है

हफ़ीज़ जौनपुरी

चाक-ए-दामाँ न रहा चाक-ए-गरेबाँ न रहा

हफ़ीज़ जौनपुरी

आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बरसों यूँ ज़ब्त से हम ने काम लिया

हफ़ीज़ जौनपुरी

आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बरसों यूँ ज़ब्त से हम ने काम लिया

हफ़ीज़ जौनपुरी

दोस्ती का चलन रहा ही नहीं

हफ़ीज़ जालंधरी

कॉफ़ी-हाउस

हबीब जालिब

शब कि मुतरिब था शराब-ए-नाब थी पैमाना था

हबीब मूसवी

कोई बात ऐसी आज ऐ मेरी गुल-रुख़्सार बन जाए

हबीब मूसवी

जबीन पर क्यूँ शिकन है ऐ जान मुँह है ग़ुस्से से लाल कैसा

हबीब मूसवी

बढ़ा दी इक नज़र में तू ने क्या तौक़ीर पत्थर की

हबीब मूसवी

हैं धब्बे तेग़-ए-क़ातिल के जिसे धोने नहीं देते

हबीब आरवी

तिश्ना-ए-तकमील है वहशत का अफ़्साना अभी

ग्यान चन्द मंसूर

जहाँ इंसानियत वहशत के हाथों ज़ब्ह होती हो

गुलज़ार देहलवी

फ़लाह-ए-आदमियत में सऊबत सह के मर जाना

गुलज़ार देहलवी

खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं

गुलज़ार

आँसू भी वही कर्ब के साए भी वही हैं

गुलनार आफ़रीन

दर्द-ए-दिल के साथ क्या मेरे मसीहा कर दिया

गुहर खैराबादी

जो पिन्हाँ था वही हर सू अयाँ है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

अपना हर उज़्व चश्म-ए-बीना है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

किस को है हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद का दावा देखें

गोपाल मित्तल

इश्क़ में कब ये ज़रूरी है कि रोया जाए

गोपाल मित्तल

तेरा दीवाना तो वहशत की भी हद से निकला

ग़ुलाम मौला क़लक़

उठने में दर्द-ए-मुत्तसिल हूँ मैं

ग़ुलाम मौला क़लक़

उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़

ग़ुलाम मौला क़लक़

उड़ाऊँ न क्यूँ तार-तार-ए-गरेबाँ

ग़ुलाम मौला क़लक़

मातम-ए-दीद है दीदार का ख़्वाहाँ होना

ग़ुलाम मौला क़लक़

इश्क़ पर फ़ाएज़ हूँ औरों की तरह लेकिन मुझे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

नशात-ए-फ़त्ह से तो दामन-ए-दिल भर नहीं पाए

ग़ुलाम हुसैन साजिद

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