वहशत Poetry (page 15)

गरेबाँ हाथ में है पाँव में सहरा का दामाँ है

हातिम अली मेहर

रू-ए-ज़ेबा नज़र नहीं आता

हसरत शरवानी

फिर नए ख़्वाब बुनें फिर नई रंगत चाहें

हसन रिज़वी

वो भी कहता था कि उस ग़म का मुदावा ही नहीं

हसन नईम

किसे बताऊँ कि वहशत का फ़ाएदा क्या है

हसन नईम

जादू-ए-ख़्वाब में कुछ ऐसे गिरफ़्तार हुए

हसन नईम

ग़म से बिखरा न पाएमाल हुआ

हसन नईम

फ़ैज़-ए-दिल से मुतरिब-ए-कामिल हुआ जाता हूँ मैं

हरबंस लाल अनेजा 'जमाल'

ऐ यास जो तू दिल में आई सब कुछ हुआ पर कुछ भी न हुआ

हक़ीर

दिल गिराँ-बारी-ए-वहशत में जिधर जाता है

हनीफ़ तरीन

फ़ज़ाओं में कुछ ऐसी खलबली थी

हनीफ़ फ़ौक़

दिल-ए-नादाँ पे शिकायत का गुमाँ क्या होगा

हनीफ़ फ़ौक़

यक़ीन की सल्तनत थी और सुल्तानी हमारी

हम्माद नियाज़ी

हुज्रा-ए-ख़्वाब से बाहर निकला

हम्माद नियाज़ी

भुला दिया भी अगर जाए सरसरी किया जाए

हम्माद नियाज़ी

बे-सबब हो के बे-क़रार आया

हम्माद नियाज़ी

मुझे रहीन-ए-ग़म-ए-जाँ-नवाज़ रहने दे

हमीद नागपुरी

कर्ब वहशत उलझनें और इतनी तन्हाई कि बस

हमदुन उसमानी

इक मुजस्सम दर्द हूँ इक आह हूँ

हमदुन उसमानी

मौसम-ए-हिज्र के आने के शिकायत नहीं की

हलीम कुरेशी

वहशत-ए-दिल ने किया है वो बयाबाँ पैदा

हैदर अली आतिश

कोई अच्छा नहीं होता है बरी चालों से

हैदर अली आतिश

फ़रेब-ए-हुस्न से गब्र-ओ-मुसलमाँ का चलन बिगड़ा

हैदर अली आतिश

दीवानगी ने क्या क्या आलम दिखा दिए हैं

हैदर अली आतिश

बला-ए-जाँ मुझे हर एक ख़ुश-जमाल हुआ

हैदर अली आतिश

ऐसी वहशत नहीं दिल को कि सँभल जाऊँगा

हैदर अली आतिश

ऐ जुनूँ होते हैं सहरा पर उतारे शहर से

हैदर अली आतिश

आख़िर-ए-कार चले तीर की रफ़्तार क़दम

हैदर अली आतिश

जो दीवानों ने पैमाइश की है मैदान-ए-क़यामत की

हफ़ीज़ जौनपुरी

ज़माने का भरोसा क्या अभी कुछ है अभी कुछ है

हफ़ीज़ जौनपुरी

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