वहशत Poetry (page 25)

चाँद उभरेगा तो फिर हश्र दिखाई देगा

अम्बरीन सलाहुद्दीन

जिस्म-ओ-जाँ में दर आई इस क़दर अज़िय्यत क्यूँ

अंबरीन हसीब अंबर

अब असीरी की ये तदबीर हुई जाती है

अंबरीन हसीब अंबर

ज़मज़मा किस की ज़बाँ पर ब-दिल-ए-शाद आया

अमानत लखनवी

मुनाजात-ए-बेवा

अल्ताफ़ हुसैन हाली

घर है वहशत-ख़ेज़ और बस्ती उजाड़

अल्ताफ़ हुसैन हाली

भटका करूँगा कब तक राहों में तेरी आ कर

आलोक यादव

नाला-ए-फ़िराक़

अल्लामा इक़बाल

ख़यालात रंगीं नहीं बोलते उस को ज्यूँ बास फूलों के रंगों में रहिए

अलीमुल्लाह

वही है वहशत वही है नफ़रत आख़िर इस का क्या है सबब

अली सरदार जाफ़री

ज़ुल्मत-कदों में कल जो शुआ-ए-सहर गई

अली जव्वाद ज़ैदी

शिकवे हम अपनी ज़बाँ पर कभी लाए तो नहीं

अली जव्वाद ज़ैदी

सफ़ीर-ए-लैला-4

अली अकबर नातिक़

सफ़ीर-ए-लैला-1

अली अकबर नातिक़

चाँदी वाले, शीशे वाले, आँखों वाले शहर में

अली अकबर नातिक़

बाद-ए-सहरा को रह-ए-शहर पे डाला किस ने

अली अकबर नातिक़

तलाश-ए-आख़र

अली अकबर अब्बास

पानी में भी प्यास का इतना ज़हर मिला है

अली अकबर अब्बास

उठते हुए तूफ़ान का मंज़र नहीं देखा

आलमताब तिश्ना

हिसार-ए-मक़्तल-ए-जाँ में लहू लहू मैं था

आलमताब तिश्ना

आइना-ख़ाना भी अंदोह-ए-तमन्ना निकला

आलमताब तिश्ना

किस लम्हे हम तेरा ध्यान नहीं करते

आलम ख़ुर्शीद

ऐ अब्र-ए-इल्तिफ़ात तिरा ए'तिबार फिर

अकरम नक़्क़ाश

अब दिल भी दुखाओ तो अज़िय्यत नहीं होती

अकरम महमूद

शाम

अख़्तर उस्मान

नए सुर की तमसील

अख़्तर उस्मान

एक हुस्न-फ़रोश से

अख़्तर शीरानी

आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या

अख़्तर शीरानी

दिल-ए-शोरीदा की वहशत नहीं देखी जाती

अख़्तर सईद ख़ान

ग़ुरूर-ए-पास-ए-रिवायत बदल के रख दूँगा

अख़्तर रज़ा अदील

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