वहशत Poetry (page 26)

दिल में इक जज़्बा-ए-बेदाद-ओ-जफ़ा ही होगा

अख़्तर होशियारपुरी

ख़ुद से निकलूँ भी तो रस्ता नहीं आसान मिरा

अकबर मासूम

फिर गई आप की दो दिन में तबीअ'त कैसी

अकबर इलाहाबादी

जज़्बा-ए-दिल ने मिरे तासीर दिखलाई तो है

अकबर इलाहाबादी

फिर वही लम्बी दो-पहरें हैं फिर वही दिल की हालत है

ऐतबार साजिद

तर्क-ए-तअल्लुक़ कर तो चुके हैं इक इम्कान अभी बाक़ी है

ऐतबार साजिद

फूलों में वो ख़ुशबू वो सबाहत नहीं आई

ऐतबार साजिद

फूल थे रंग थे लम्हों की सबाहत हम थे

ऐतबार साजिद

फिर वही लम्बी दो-पहरें हैं फिर वही दिल की हालत है

ऐतबार साजिद

आँखों से अयाँ ज़ख़्म की गहराई तो अब है

ऐतबार साजिद

मेरा शिकवा तिरी महफ़िल में अदू करते हैं

ऐश देहलवी

बज़्म ख़ाली नहीं मेहमान निकल आते हैं

ऐन ताबिश

इक साया मेरे जैसा है

ऐन इरफ़ान

हिम्मत-ए-मर्दां

अहमक़ फफूँदवी

बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत वहशत की है धूप 'ज़िया'

अहमद ज़िया

प्यार किया था तुम से मैं ने अब एहसान जताना क्या

अहमद ज़िया

है वाहिमों का तमाशा यहाँ वहाँ देखो

अहमद शनास

तुझ से भी कब हुई तदबीर मिरी वहशत की

अहमद शहरयार

यादों की तज्सीम पे मेहनत होती है

अहमद शहरयार

ख़ुश नहीं आए बयाबाँ मिरी वीरानी को

अहमद शहरयार

सारी दुनिया से अलग वहशत-ए-दिल है अपनी

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

चाहे हैं तमाशा मिरे अंदर कई मौसम

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

शब ढले गुम्बद-ए-असरार में आ जाता है

अहमद रिज़वान

रूह लबों तक आ कर सोचे

अहमद नदीम क़ासमी

रेस्तोराँ

अहमद नदीम क़ासमी

हम कभी इश्क़ को वहशत नहीं बनने देते

अहमद नदीम क़ासमी

सवाद-ए-शाम न रंग-ए-सहर को देखते हैं

अहमद महफ़ूज़

सर-ब-सर पैकर-ए-इज़हार में लाता है मुझे

अहमद महफ़ूज़

रक़्स-ए-शरर क्या अब के वहशत-नाक हुआ

अहमद महफ़ूज़

मैं वहशत-ओ-जुनूँ में तमाशा नहीं बना

अहमद ख़याल

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