समय Poetry (page 22)

हुजूम देख के रस्ता नहीं बदलते हम

हबीब जालिब

'ग़ालिब'-ओ-'यगाना' से लोग भी थे जब तन्हा

हबीब जालिब

दिल-ए-पुर-शौक़ को पहलू में दबाए रक्खा

हबीब जालिब

दयार-ए-'दाग़'-ओ-'बेख़ुद' शहर-ए-देहली छोड़ कर तुझ को

हबीब जालिब

भुला भी दे उसे जो बात हो गई प्यारे

हबीब जालिब

अब तेरी ज़रूरत भी बहुत कम है मिरी जाँ

हबीब जालिब

याद जो आए ख़ुद शरमाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने

हबीब आरवी

हैं धब्बे तेग़-ए-क़ातिल के जिसे धोने नहीं देते

हबीब आरवी

ख़ुश-नज़र है न ख़ुश-ख़याल है ये

हबाब तिर्मिज़ी

न साथ देगा कोई राह आश्ना मेरा

गुलनार आफ़रीन

वरक़ वरक़ जो ज़माने के शाहकार में था

गुहर खैराबादी

वक़ार दे के कभी बे-वक़ार मत करना

गुहर खैराबादी

तारीकियों में अपनी ज़िया छोड़ जाऊँगा

गुहर खैराबादी

मैं ग़र्क़ वहाँ प्यास के पैकर की तरह था

गुहर खैराबादी

मैं इक मुसाफ़ि-ए-तन्हा मिरा सफ़र तन्हा

गुहर खैराबादी

दिल के दामन में जो सरमाया-ए-अफ़्कार न था

गुहर खैराबादी

राह-ए-उल्फ़त में मक़ामात पुराने आए

गोविन्द गुलशन

आते ही जवानी के ली हुस्न ने अंगड़ाई

गोपाल कृष्णा शफ़क़

सब रंग ना-तमाम हों हल्का लिबास हो

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

गली से अपनी इरादा न कर उठाने का

ग़ुलाम मौला क़लक़

न पहुँचे हाथ जिस का ज़ोफ़ से ता-ज़ीस्त दामन तक

ग़ुलाम मौला क़लक़

नुमूद पाते हैं मंज़रों की शिकस्त से फ़तह के बहाने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

सुख़न का लहजा गुमान-ख़ाने में रह गया है

ग़ज़नफ़र हाशमी

ख़्वाब आँखों की गली छोड़ के जाने निकले

ग़यास मतीन

आँख की पुतली में सूरज सर में कुछ सौदा उगा

ग़यास मतीन

चल दिया नाज़ ज़माने के उठाने वाला

ग़ौसिया ख़ान सबीन

कोई हमराह नहीं राह की मुश्किल के सिवा

ग़नी एजाज़

बेवफ़ा के वा'दे पर ए'तिबार करते हैं

ग़नी एजाज़

रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब'

ग़ालिब

सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का

ग़ालिब

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