समय Poetry (page 23)

क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना

ग़ालिब

लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर

ग़ालिब

हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था

ग़ालिब

बला से हैं जो ये पेश-ए-नज़र दर-ओ-दीवार

ग़ालिब

ज़ालिम है वो ऐसा कि जफ़ा भी नहीं करता

फ़िरदौस गयावी

लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है

फ़िराक़ गोरखपुरी

कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में

फ़िराक़ गोरखपुरी

'फ़िराक़' दौड़ गई रूह सी ज़माने में

फ़िराक़ गोरखपुरी

शाम-ए-अयादत

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुगनू

फ़िराक़ गोरखपुरी

हिण्डोला

फ़िराक़ गोरखपुरी

आज़ादी

फ़िराक़ गोरखपुरी

वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें

फ़िराक़ गोरखपुरी

सुना तो है कि कभी बे-नियाज़-ए-ग़म थी हयात

फ़िराक़ गोरखपुरी

कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में

फ़िराक़ गोरखपुरी

आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

सई-ए-ग़ैर-हासिल को मुद्दआ नहीं मिलता

फ़िगार उन्नावी

लब पे झूटे तराने होते हैं

फ़िगार उन्नावी

शौक़ीन मिज़ाजों के रंगीन तबीअ'त के

फ़ाज़िल जमीली

अदीब था न मैं कोई बड़ा सहाफ़ी था

फ़ाज़िल अंसारी

ख़ाक में मुझ को मिरी जान मिला रक्खा है

फ़ज़ल हुसैन साबिर

ग़ज़ल के पर्दे में बे-पर्दा ख़्वाहिशें लिखना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

इक मुश्त-ए-पर हूँ मुझ को यक़ीनन सुकूँ नहीं

फ़ातिमा वसीया जायसी

बादशाह-ए-वक़्त कोई और कोई मजबूर क्यूँ

फ़ातिमा वसीया जायसी

आँसू है क़ीमती जो हमारी पलक में है

फ़ातिमा वसीया जायसी

हमीं पे ख़त्म हैं जौर-ओ-सितम ज़माने के

फ़सीह अकमल

कुछ नया करने की ख़्वाहिश में पुराने हो गए

फ़सीह अकमल

किसी के सामने इस तरह सुर्ख़-रू होगी

फ़सीह अकमल

सफ़-ए-मातम पे जो हम नाचने गाने लग जाएँ

फ़रताश सय्यद

कुश्तगान-ए-ख़ंजर-ए-तस्लीम-रा

फर्रुख यार

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