समय Poetry (page 21)

होता फ़नकार-ए-जदीद और न शाएर होता

हैदर अली जाफ़री

वहशी थे बू-ए-गुल की तरह इस जहाँ में हम

हैदर अली आतिश

मय-ए-गुल-रंग से लबरेज़ रहें जाम सफ़ेद

हैदर अली आतिश

है जब से दस्त-ए-यार में साग़र शराब का

हैदर अली आतिश

बज़्म-ए-तकल्लुफ़ात सजाने में रह गया

हफ़ीज़ मेरठी

यही मसअला है जो ज़ाहिदो तो मुझे कुछ इस में कलाम है

हफ़ीज़ जौनपुरी

उन की ये ज़िद कि मिरे घर में न आए कोई

हफ़ीज़ जौनपुरी

कहीं मरने वाले कहा मानते हैं

हफ़ीज़ जौनपुरी

अजब ज़माने की गर्दिशें हैं ख़ुदा ही बस याद आ रहा है

हफ़ीज़ जौनपुरी

आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए

हफ़ीज़ जालंधरी

सख़्त-गीर आक़ा

हफ़ीज़ जालंधरी

रक़्क़ासा

हफ़ीज़ जालंधरी

आख़िरी रात

हफ़ीज़ जालंधरी

दोस्ती का चलन रहा ही नहीं

हफ़ीज़ जालंधरी

अगर मौज है बीच धारे चला चल

हफ़ीज़ जालंधरी

आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए

हफ़ीज़ जालंधरी

वफ़ा नज़र नहीं आती कहीं ज़माने में

हफ़ीज़ बनारसी

जो ख़त है शिकस्ता है जो अक्स है टूटा है

हफ़ीज़ बनारसी

दिल की आवाज़ में आवाज़ मिलाते रहिए

हफ़ीज़ बनारसी

दिल की आवाज़ में आवाज़ मिलाते रहिए

हफ़ीज़ बनारसी

नाम क्या लूँ

हबीब जालिब

मता-ए-ग़ैर

हबीब जालिब

औरत

हबीब जालिब

यूँ वो ज़ुल्मत से रहा दस्त-ओ-गरेबाँ यारो

हबीब जालिब

वो देखने मुझे आना तो चाहता होगा

हबीब जालिब

तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था

हबीब जालिब

'मीर'-ओ-'ग़ालिब' बने 'यगाना' बने

हबीब जालिब

लोग गीतों का नगर याद आया

हबीब जालिब

कभी तो मेहरबाँ हो कर बुला लें

हबीब जालिब

हम ने दिल से तुझे सदा माना

हबीब जालिब

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