समय Poetry (page 19)

थी हौसले की बात ज़माने में ज़िंदगी

इब्राहीम अश्क

तिरी ज़मीं से उठेंगे तो आसमाँ होंगे

इब्राहीम अश्क

तिरी ज़मीं से उठेंगे तो आसमाँ होंगे

इब्राहीम अश्क

शीशे का आदमी हूँ मिरी ज़िंदगी है क्या

इब्राहीम अश्क

रू-ब-रू उन के कोई हर्फ़ अदा क्या करते

इब्राहीम अश्क

मोहब्बतों में जो मिट मिट के शाहकार हुआ

इब्राहीम अश्क

मिशअल-ब-कफ़ कभी तो कभी दिल-ब-दस्त था

इब्राहीम अश्क

करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे

इब्राहीम अश्क

मैं वो नहीं कि ज़माने से बे-अमल जाऊँ

इब्राहीम होश

दिल वही अश्क-बार रहता है

इब्न-ए-मुफ़्ती

ये बातें झूटी बातें हैं

इब्न-ए-इंशा

ठहरेगा वही रन में जो हिम्मत का धनी है

हुरमतुल इकराम

दिल-ए-आज़ुर्दा को बहलाए हुए हैं हम लोग

हुरमतुल इकराम

अपने चमन पे अब्र ये कैसा बरस गया

हुरमतुल इकराम

जैसे कोई ज़िद्दी बच्चा कब बहले बहलाने से

हुमैरा रहमान

कभी कभी तो जुदा बे-सबब भी होते हैं

हुमैरा राहत

हर एक ख़्वाब की ताबीर थोड़ी होती है

हुमैरा राहत

पास-ए-नामूस-ए-तमन्ना हर इक आज़ार में था

होश तिर्मिज़ी

इस ज़माने में ऐसे बहुत है

हिना तैमूरी

आप के तग़ाफ़ुल का सिलसिला पुराना है

हिना तैमूरी

जवाब

हिमायत अली शाएर

कभी तो सेहन-ए-अना से निकले कहीं पे दश्त-ए-मलाल आया

हिलाल फ़रीद

वो ये कहते हैं ज़माने की तमन्ना मैं हूँ

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

रास आई न मुझे अंजुमन-आराई भी

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

निय्यत अगर ख़राब हुई है हुज़ूर की

हीरा लाल फ़लक देहलवी

देखने वाले ज़माने का भी हक़ है मुझ पर

हज़ार लखनवी

वो बद-दुआ उसे समझे अगर दुआ लिक्खूँ

हयात लखनवी

सारी इज़्ज़त नौकरी से इस ज़माने में है 'मेहर'

हातिम अली मेहर

क़त्अ हो कर काकुल-ए-शब-गीर आधी रह गई

हातिम अली मेहर

कुछ और सबक़ हम को ज़माने ने सिखाए

हस्तीमल हस्ती

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