जीवन Poetry (page 42)

आँख झपकी थी बस इक लम्हे को और इस के ब'अद

इफ़्तिख़ार मुग़ल

मैं भी बे-अंत हूँ और तू भी है गहरा सहरा

इफ़्तिख़ार मुग़ल

तू नहीं तो ज़िंदगी में और क्या रह जाएगा

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी

रौशनी की डोर थामे ज़िंदगी तक आ गए

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

दर-ओ-दीवार ख़ुद-कुशी कर लें

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

मिरा ख़ुश-ख़िराम बला का तेज़-ख़िराम था

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मैं ज़िंदगी की दुआ माँगने लगा हूँ बहुत

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सहरा में एक शाम

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मुकालिमा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मोहब्बत की एक नज़्म

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बन-बास

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सर-ए-बाम-ए-हिज्र दिया बुझा तो ख़बर हुई

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हासिल

इफ़्तिख़ार आज़मी

हवादिसात ज़रूरी हैं ज़िंदगी के लिए

इबरत मछलीशहरी

ख़याल-ए-बद से हमा-वक़्त इज्तिनाब करो

इबरत बहराईची

ये और बात है कि बरहना थी ज़िंदगी

इब्राहीम अश्क

थी हौसले की बात ज़माने में ज़िंदगी

इब्राहीम अश्क

बिखरे हुए थे लोग ख़ुद अपने वजूद में

इब्राहीम अश्क

शीशे का आदमी हूँ मिरी ज़िंदगी है क्या

इब्राहीम अश्क

मिशअल-ब-कफ़ कभी तो कभी दिल-ब-दस्त था

इब्राहीम अश्क

मैं कब रहीन-ए-रेग-ए-बयाबान-ए-यास था

इब्राहीम अश्क

यूँही वाबस्तगी नहीं होती

इब्न-ए-सफ़ी

शौक़ जब भी बंदगी का रहनुमा होता नहीं

इब्न-ए-मुफ़्ती

यगानगी में भी दुख ग़ैरियत के सहता हूँ

हुरमतुल इकराम

वो दिल समो ले जो दामन में काएनात का कर्ब

हुरमतुल इकराम

वो आलम है कि हर मौज-ए-नफ़स है रूह पर भारी

हुरमतुल इकराम

रह-ए-तलब में बड़ी तुर्फ़गी के साथ चले

हुरमतुल इकराम

रहेगा अक़्ल के सीने पे ता-अबद ये दाग़

हुरमतुल इकराम

जैसे जैसे दर्द का पिंदार बढ़ता जाए है

हुरमतुल इकराम

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