अधिक Poetry (page 14)

ज़मीं की ख़ाक तो अफ़्लाक से ज़ियादा है

अज़ीम हैदर सय्यद

हक़ीक़तों का नई रुत की है इरादा क्या

अज़हर इनायती

बनाए ज़ेहन परिंदों की ये क़तार मिरा

अज़हर इनायती

क़ज़ा का तीर था कोई कमान से निकल गया

अज़हर अदीब

हवस ने मुझ से पूछा था तुम्हारा क्या इरादा है

औरंगज़ेब

कितना मुश्किल है

अतीक़ुल्लाह

उसे अब भूल जाने का इरादा कर लिया है

अताउल हक़ क़ासमी

कब कहाँ क्या मिरे दिलदार उठा लाएँगे

अता तुराब

आसमानों में भी दरवाज़ा लगा कर देखें

अता तुराब

रोएँ न अभी अहल-ए-नज़र हाल पे मेरे

असरार-उल-हक़ मजाज़

उन का जश्न-ए-साल-गिरह

असरार-उल-हक़ मजाज़

शौक़ के हाथों ऐ दिल-ए-मुज़्तर क्या होना है क्या होगा

असरार-उल-हक़ मजाज़

बर्बाद-ए-तमन्ना पे इताब और ज़ियादा

असरार-उल-हक़ मजाज़

ग़ज़ल-पैमाई

असरार जामई

कहीं पे क़ुर्ब की लज़्ज़त का इक़्तिबास नहीं

असलम आज़ाद

कहीं पे क़ुर्ब की लज़्ज़त का इक़्तिबास नहीं

असलम आज़ाद

होंटों को फूल आँख को बादा नहीं कहा

आसिम वास्ती

तुम इंतिज़ार के लम्हे शुमार मत करना

आसिम वास्ती

होंटों को फूल आँख को बादा नहीं कहा

आसिम वास्ती

अहद-ए-वफ़ा न याद दिलाएँ तो क्या करें

अशरफ़ रफ़ी

है कौन जिस से कि वादा ख़ता नहीं होता

अशहर हाशमी

ज़िंदगी मौत का आईना

असग़र नदीम सय्यद

छुट्टी का दिन

असग़र नदीम सय्यद

अभी कुछ दिन लगेंगे

असग़र नदीम सय्यद

उस अब्र से भी क़बाहत ज़ियादा होती है

असअ'द बदायुनी

तिरे ख़याल से फिर आँख मेरी पुर-नम है

अरशद लतीफ़

नहीं चमके ये हँसने में तुम्हारे दाँत अंजुम से

अरशद अली ख़ान क़लक़

दाँतों से जबकि उस गुल-ए-तर के दबाए होंठ

अरशद अली ख़ान क़लक़

शर्त-ए-दीवार-ओ-दर-ओ-बाम उठा दी है तो क्या

अरशद अब्दुल हमीद

दरवाज़ा तिरे शहर का वा चाहिए मुझ को

अर्श सिद्दीक़ी

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