रोएँ न अभी अहल-ए-नज़र हाल पे मेरे
होना है अभी मुझ को ख़राब और ज़ियादा
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हिज्र में कैफ़-ए-इज़्तिराब न पूछ
ब-जवाब-ए-पंद-नामा
मिरी वफ़ा का तिरा लुत्फ़ भी जवाब नहीं
फिर किसी के सामने चश्म-ए-तमन्ना झुक गई
आहंग-ए-नौ
रूदाद-ए-ग़म-ए-उल्फ़त उन से हम क्या कहते क्यूँकर कहते
तआरुफ़
आओ अब मिल के गुलिस्ताँ को गुल्सिताँ कर दें
इज़्न-ए-ख़िराम लेते हुए आसमाँ से हम
न उन का ज़ेहन साफ़ है न मेरा क़ल्ब साफ़ है
रह-ए-शौक़ से अब हटा चाहता हूँ
अँधेरी रात का मुसाफ़िर