न उन का ज़ेहन साफ़ है न मेरा क़ल्ब साफ़ है
तो क्यूँ दिलों में जा-गुज़ीं वो बिन्त-ए-सद-अफ़ाफ़ है
'मजाज़' आह क्या करे वो दोस्त भी हरीफ़ भी
फ़लक तो अब भी नर्म है ज़मीन ही ख़िलाफ़ है
Habib Jalib
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Allama Iqbal
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मिरी वफ़ा का तिरा लुत्फ़ भी जवाब नहीं
वतन-आशोब
आप की मख़्मूर आँखों की क़सम
नूरा
धुआँ सा इक सम्त उठ रहा है शरारे उड़ उड़ के आ रहे हैं
सरमाया-दारी
मुजरिम-ए-सरताबी-ए-हुस्न-ए-जवाँ हो जाइए
तिरे माथे पे ये आँचल तो बहुत ही ख़ूब है लेकिन
आज
इज़्न-ए-ख़िराम लेते हुए आसमाँ से हम
रूदाद-ए-ग़म-ए-उल्फ़त उन से हम क्या कहते क्यूँकर कहते
इशरत-ए-तन्हाई