मुजरिम-ए-सरताबी-ए-हुस्न-ए-जवाँ हो जाइए
गुल-फ़िशानी ता-कुजा शोला-फ़िशाँ हो जाइए
खाईएगा इक निगाह-ए-लुत्फ़ का कब तक फ़रेब
कोई अफ़्साना बना कर बद-गुमाँ हो जाइए
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Rahat Indori
Gulzar
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(841) Peoples Rate This
सीने में उन के जल्वे छुपाए हुए तो हैं
शौक़-ए-गुरेज़ाँ
मै-कदा छोड़ के मैं तेरी तरफ़ आया हूँ
परतव-ए-साग़र-ए-सहबा क्या था
ख़्वाब-ए-सहर
इज़्न-ए-ख़िराम लेते हुए आसमाँ से हम
ए'तिराफ़
दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता-ए-जफ़ा पे कहीं
बर्बाद-ए-तमन्ना पे इताब और ज़ियादा
सानेहा
मज़दूरों का गीत
हुस्न फिर फ़ित्नागर है क्या कहिए