मुझे साग़र दोबारा मिल गया है
तलातुम में किनारा मिल गया है
मिरी बादा-परस्ती पर ना जाओ
जवानी को सहारा मिल गया है
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हुस्न फिर फ़ित्नागर है क्या कहिए
न हम-आहंग-ए-मसीहा न हरीफ़-ए-जिब्रील
आज
सारा आलम गोश-बर-आवाज़ है
नौ-जवान ख़ातून से
नूरा
दर्द की दौलत-ए-बेदार अता हो साक़ी
साक़ी
सरमाया-दारी
ए'तिराफ़
मज़दूरों का गीत
बस इस तक़्सीर पर अपने मुक़द्दर में है मर जाना